Thursday, December 4, 2014

कामसूत्र और 64 कलाएं


आचार्य वात्‍स्‍यायन ने कामसूत्र की रचना इसलिए की थी ताकि गृहस्‍थी से अनजान स्‍त्री-पुरुष इसके हर पक्ष को समझ सकें और इसका ज्ञान व प्रशिक्षण प्राप्‍त करने के उपरांत ही इसमें प्रवेश करें। इससे तनाव से मुक्‍त एक स्‍वस्‍थ्‍य गृहस्‍थी की रचना हो सकती है। लेकिन आजकल जिस तरह से वासना,आकर्षण को प्‍यार समझ प्रेम विवाह करना जैसे कारण विवाह का आधार बन रहे हैं, जिससे गृहस्‍थी की सारी नींव ही कमजोर पड़ रही है। आचार्य की यह 64 विद्या स्‍त्री पुरुष को व्‍यवहारिक बनाने के उद्देश्‍य से बताए गए हैं।
पुरुष के लिए आचार्य का संदेश
पुरुष को धर्म, अर्थ, दंडनीति आदि का अध्‍ययन करते हुए कामसूत्र से संबंधित सभी कलाओं का अध्‍ययन करना चाहिए। वात्‍स्‍यान के अनुसार, कामशास्‍त्र के ज्ञाता बहुत थोड़े से पुरुष होते हैं। जैसे व्‍याकरण या ज्‍योतिष एक शास्‍त्र है उसी तरह काम का भी एक शास्‍त्र है जीवन में काम के विषय में जानना जरूरी है कि काम जीवन का बेहद महत्‍वपूर्ण पक्ष है। इसमें शर्म, संकोच आदि की वजह से इसकी उपेक्षा जीवन में कुंठा बढ़ाती है और गलत मार्ग की ओर प्रेरित करता है।
स्त्रियों के लिए वात्‍स्‍यायन की शिक्षा
स्त्रियों को काम की शिक्षा देना बेहद जरूरी है, क्‍योंकि इस ज्ञान का प्रयोग पुरुषों से अधिक स्त्रियों के लिए जरूरी है। स्‍त्री को विवाह से पहले पिता के घर में और विवाह के पश्‍चात पति की अनुमति से काम की शिक्षा लेनी चाहिए। वात्‍स्‍यायन का मत है कि स्त्रियों को बिस्‍तर पर गणिका की तरह व्‍यवहार करना चाहिए। इससे दांपत्‍य जीवन में स्थिरता बनी रहती है। पति अन्‍य स्त्रियों की ओर आकर्षित नहीं हो पाता और पत्‍नी के साथ उसके मधुर संबंध बने रहते हैं। इसलिए स्त्रियों को यौन क्रिया का ज्ञान होना आवश्‍यक है ताकि वह कामकला में निपुण हो सके और पति को अपने प्रेमपाश में बांध कर रख सके।
स्त्रियों के लिए उचित यह है कि विश्‍वासपात्र व्‍यक्ति से एकांत में कामशास्‍त्र का ज्ञान व प्रयोग सीखे। इसके पश्‍चात 64 प्रयोगों का अभ्‍यास कन्‍या को एकांत में अकेले करना चाहिए ताकि उन्‍हें इसमें निपुणता हासिल हो।
कौन लोग हो सकते हैं विश्‍वासपात्र?
आचार्य वात्‍स्‍यान के अनुसार एक कन्‍या के लिए विश्‍वसनीय निर्देशक निन्‍नलिखित लोग हो सकते हैं-
* धाय की ऐसी कन्‍या जो साथ में खेली हो और विवाहित होने के पश्‍चात पुरुष समागम से परिचित हो
* विवाहिता सखी, जिसे संभोग का आनंद प्राप्‍त हो चुका हो। साथ में उसका सही बोलने वाली और मधुरबोलने वाली होना जरूरी हो ताकि वह काम का सही-सही ज्ञान दे सके।
* हम उम्र मौसी यानी मां की छोटी बहन
* अधेड़ बुढि़या, दासी
* बड़ी बहन, ननद या भाभी
वात्‍स्‍यान द्वारा स्त्रियों के लिए सुझाई गई कामसूत्र की 64 विद्याएं-
गीत, वाद्य, नृत्‍य, चित्र बनाना, बिंदी व तिलक लगाना सीखना, रंगोली बनाना, घरों को फूलों से सजाना, दांतों, वस्‍त्रों, केश, नख आदि को सलीके से रखना, घर के फर्श को साफ रखना, बिस्‍तर बिछाना, जलतरंग बजाना, जलक्रीड़ा करना, नए सीखने के लिए हमेशा उत्‍साहित रहना,माला गूंथना सीखना, सिर के ऊपर से नीचे की ओर मालाएं लटकाना व सिर के चारों ओर माला धारण करना, समय एवं स्‍थान आदि के अनुरूप शरीर को वस्‍त्रादि से सजाना, शंख, अभ्रक आदि से वस्‍त्रों को सजाना, सुगंधित पदार्थ का उचित प्रयोग, गहने बनाना, चमत्‍कारी व्‍यक्तित्‍व, सुंदरता बढ़ाने के नुस्‍खे अपनाना, बेहतरीन ढंग से काम करना, स्‍वादिष्‍ट भोजना बनाना, खाने के बाद की सामग्री जैसे पान, सोंठ, गीला चूर्ण आदि बनाना, सीना, बुनना और कढाई,  चीणा व डमरू बजाना, धागों की सहायता से चित्रकारी बनाना, पहेलियां पूछना और हल करना, अंत्‍याक्षरी करना, ऐसी बातें जो शब्‍द व अर्ध की दृष्टि से दोहराने में कठिन हो, पुस्‍तक पढना, नाटक व कहानियों का ज्ञान, काव्‍य का ज्ञान, लकड़ी के चौखटे, कुर्सी आदि की बुनाई, विभिन्‍न धातुओं की आकृतियां बनाना, काष्‍ठ कला, भवन निर्माण कला,मूल्‍यवान वस्‍तुओं व रत्‍नों की पहचान, धातुओं का ज्ञान, मणियों व रंगों का ज्ञान, उद्यान लगाना, बटेर लडाने की विधि का ज्ञान, तोता मैना से बोलना व गाना सिखाना, पैरों से शरीर की मालिश, गुप्‍त अक्षरों का ज्ञान, कोड भाषा में बात करना, कई भाषाओं का ज्ञान, फूलों की गाडी बनाना, शुभ— अशुभ शकुनों का फल बताना, यंत्र बनाना, सुनी हुई बात, पुस्‍तक आदि को स्‍मरण करना, मिलाकर पढना, गूढ कविता को स्‍पष्‍ट करना, शब्‍दकोश का ज्ञान, छंद का ज्ञान, काव्‍य रचना, नकली रूप धरना, ढंग से वस्‍त्र पहनना, बच्‍चों के खिलौने बनाना,व्‍यवहार ज्ञान, विजयी होने का ज्ञान, व्‍यायाम संबंधी विद्या
आचार्य वात्‍स्‍यायन का मत है कि इन कलाओं को जानने वाली नारी पति वियोग में भी इन कलाओं की मदद से रहना सीख जाती है, उसका पति उसके गुणों पर मोहित रहता है और अन्‍य स्त्रियों से संबंध नहीं बनाता, ऐसे स्‍त्री पुरुष का दांपत्‍य सदा सफल रहता है।
नोट- आज के संदर्भ में इनमें से कई कलाएं सीखने योग्‍य नहीं है, लेकिन इसका तात्‍पर्य व्‍यवहार कुशलता से जरूर है। एक व्‍यवहार कुशल स्‍त्री अव्‍यवहारिक स्‍त्री से हमेशा श्रेष्‍ठ मानी गई है और यही दांपत्‍य जीवन की सफलता का सबसे बड़ा राज है।
                                                                                                                वैद्य.एस0के0यादव

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