Wednesday, December 10, 2014

लड़कियों की 'पसंद' ओरल सेक्स

नेशनल हेल्थ स्टैटिक सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार ‍ओरल सेक्स करने की प्रवृति टीनएजर्स में कम हो रही है, जबकि युवाओं में अब भी ओरल सेक्स का क्रेज़ बना हुआ है। अमेरिका में हाल ही में जारी हुई नेशनल हेल्थ स्टैटिक रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले आंकड़ों की तुलना में टीनएजर्स में ओरल सेक्स करने प्रवृति में कमी आई है, लेकिन यंगस्टर्स में ओरल सेक्स करने की आदत आंशिक रूप से बढ़ी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि लड़कों की तुलना में लड़कियां पहली बार सेक्स करने के दौरान ओरल सेक्स को प्राथमिकता देती हैं, क्योंकि वे प्रेग्नेंसी और अन्य यौन बीमारियों जैसे कॉन्ट्रेक्टिंग सेक्सुअल ट्रांसमिटेड डिसीज़ से बचना चाहती हैं। यौन बीमारियों और प्रेग्नेंसी से बचने के लिए लड़कियां मुख मैथुन करना पसंद करती हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 15 से 24 वर्ष की आयु के बीच के दो तिहाई युवाओं ने आवश्यक रूप से ओरल सेक्स किया। लड़कियों ने खास तौर पर पहली बारी योनि संभोग से पहले कई बार ओरल सेक्स किया। सर्वे के अनुसार 26 प्रतिशत लड़कियों ने योनि संभोग से पहले ओरल सेक्स किया, जबकि 27 प्रतिशत लड़कियों ने एक बार योनि संभोग के बाद ओरल सेक्स का आनंद लिया । 7.4 प्रतिशत लड़कियां ऐसी भी रहीं, जिन्होने योनि संभोग और ओरल सेक्स का मज़ा एक साथ किया।
पेरेंटहूड फेडरेरेशन ऑफ अमेरिका की वाइस प्रेसिडेंट लेज़ली केंटर ने इस बारे में युवाओं के स्वास्थ्य पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि ओरल सेक्स टीएएजर्स के लिए हौवा है। उन्हें यह जान लेना चाहिए कि यह पूरी तरह बीमारी मुक्त नहीं है। सर्वे में ओरल सेक्स से होने वाले संभावित खतरों पर चिंता भी जताई गई है। (एजेंसियां)

पश्चिम में न्यूड योगा की धूम

भारत वर्ष में ऋषि मुनियों ने हमेशा योग पर जोर दिया है। आज योग न सिर्फ देश बल्कि विदेशों में भी प्रचलित हो रहा है,वैसे हमें इस बात पर गर्व हो सकता है कि भारत से शुरू हुई योग यात्रा विदेशों में भी चलन में आ रही है। लेकिन आपको ये जानकर बिल्कुल भी खुशी नहीं होगी की भारत का योग विदेशों में पहुंचकर न सिर्फ योगा हो गया है बल्कि इसको करने का तरीका भी बदल गया है, जी हां विदेशों में योगा न्यूड होकर करने का चलन बढ़ रहा है। आज न्यूड योगा का चलन यहां व्यवसाय का रूप लेता जा रहा है,अब ऐसे योग सेंटर खोले जा रहे हैं जिनमें योगा न्यूड होकर किया जाता है। फिलहाल न्यूड योगा क्लास सिर्फ पुरुषों के लिए है। यहां कई सेंटर ऐसे हैं भी हैं जहां महिलाएं को सिर्फ अंडर गार्मेंट्स में ही योगा कराया जाता है । इन देशों में अमेरिका कनाडा, यूके, स्पेन, आस्ट्रेलिया जैसे देश शामिल हैं। योग के इस बदलते रूप को इस तरह भी देखा जा सकता है कि भारत की संस्कृति योगवादी रही है और पश्चिम की भोगवादी इसलिए पश्चिमी देशों ने इसे अपनी भोगवादी और खुली संस्कृति के अनुसार ढाल लिया। यहीं नहीं न्यूड योग का चलन हॉलीवुड की अभिनेत्रियों में देखा जा रहा है।
इन देशों में न्यूड होकर योगा करने के पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि इससे योगा ज्यादा जल्दी असर दिखाता है और इससे सेक्स क्षमता भी बढ़ती है,वैसे भारत में योगा का प्रचार बाबा रामदेव कर रहे हैं, उन्होंने कहा भी है कि योगा के प्रचार के लिए ग्लैमर जरूरी है लेकिन इससे इतना ग्लैमर जुड़ जाएगा ये तो उन्होंने भी नहीं सोचा होगा।
न्यूयॉर्क के योग स्टूडियो में पुरुषों की न्‍यूड योगा क्‍लास की लोकप्रियता से संकेत लेते हुए, अब इसके आयोजक नग्न योग के सहशिक्षण की पेशकश कर रहे हैं। बोल्ड एंड नेकेड (साहसी और नग्न) योग के नाम से जाने जाने वाले इस योग की पुरुषों और महिलाओं की सहशिक्षण कक्षाओं की समय सारिणी पेश की जाएगी।
मालिकों का कहना कि है यह पेशकश योग प्रशिक्षण के दौरान आरामदेह महसूस करने के लिए है और इस अवस्था में योग करने से आश्‍चर्यजनक आत्मविश्‍वास आता है। अपनी साथी मोनिका वर्नर के साथ स्टूडियो चलाने वाले वो जोस्ची श्‍वार्ज ने कहा कि यह शरीर के प्रति आपके नकारात्मक एहसास से आपको मुक्त करता है और आप खुद को अधिक स्वीकार करने वाले बनते हैं और खुद से गहराई तक जुड़ते हैं। इनकी वेबसाइट पर कहा गया है कि यह खुद को जानने, स्वीकार करने और प्यार करने के लिए है, योग का हिस्सा अपने शरीर का सम्मान करना और उससे जुड़ना है। वर्नर ने बताया कि जब वस्‍त्रहीनता की अवस्था में आपमें ज्यादा आत्मविश्वास आता है, तब कपड़े पहनने के बाद भी आप में उतना ही आत्मविश्वास बना रहता है।
भारत में सदियों से शरीर को स्वस्थ रखने के लिए योग किया जाता रहा है। आज भी भारत में योग करने वालों की तादाद लाखों में है। आपने भी योग की सभी विधियों को देखा या किया होगा, पर क्या आपने कभी न्यूड योग के बारे में सुना है। अगर नहीं तो आपको यकीन करना होगा कि दुनिया में ऎसी जगह भी है जहां न्यूड योग होता है। और वो भी कंबाइंड में यानि कि पुरूष-महिला एक साथ योग करते हैं। अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में यह योग एक योगा क्लासेज स्टूडियो में होता है। कुल मिला कर कहा जा सकता है कि जब से योग ने भारत की सरहदें लाँघी है तब से यह मर्यादा की सरहदें भी लाँघ चुका है। अमेरिका में योग का योगा होते-होते अब योग और भोग का समन्वय होने लगा है अर्थात भोगवादी संस्कृति और योगवादी संस्कृति दोनों ही मिलकर विश्व में नया बाजार तलाश करने में जुट गई है। योग पर अब ग्लैमर के रंग के साथ ही सेक्स का रंग इसलिए चढ़ाया जाने लगा है कि योग के सारे आसन और प्राणायाम को एक प्रोडक्ट बनाकर बेचा जा सके। इसीके चलते न्यूड योगा, हॉट योगा और सेक्सी योगा आदि के नाम से जहाँ योगा क्लास संचालित हो रही है।
                                                                                                                         वैद्य एस0के0यादव

Saturday, December 6, 2014

आपका बच्चा जब पूछे ऐसा सवाल...



आपका बच्चा जब पूछे ऐसा सवाल...
बच्चे कई बार सेक्स संबंधित ऐसे सवाल पैरंट्स से पूछ बैठते हैं, जिनका जवाब देना उलझन भरा काम होता है। कई बार मां-बाप ऐसे सवालों को टाल जाते हैं तो कई बार बच्चों को डांट देते हैं। दोनों ही चीजें बच्चे के मानसिक विकास के लिए नुकसानदायक हैं। फिर क्या करें ? बच्चे के ऐसे हर सवाल का खास तरीके से जवाब दें। कैसे, एक्सपर्ट्स से मिली जानकारी के आधार पर हम आपको बता रहे हैं—
4-9 साल के बच्चों के सवाल 
बच्चे कहां से आते हैं ? मैं कहां से आया ? पड़ोस वाली आंटी का पेट बड़ा क्यों है ?( प्रेगनेंट महिला को देखकर)
यह एक ऐसा सवाल है, जो इस उम्र के लगभग हर बच्चे के दिमाग में उठता है। ऐसे सवाल पूछने पर बच्चे को डांटना या उसकी बात को आई-गई करना ठीक नहीं है, क्योंकि इस जिज्ञासा को अगर आपने शांत नहीं किया तो वह कहीं और से जानने की कोशिश करेगा और ऐसे में बहुत मुमकिन है कि वह भ्रमित हो जाए। इस उम्र के बच्चे कुदरत और जानवरों के उदाहरणों से किसी बात को अच्छी तरह समझ लेते हैं। ऐसे में इस सवाल का जवाब देने के लिए आप उसे कहीं गार्डन या बाहर वॉक पर ले जाएं। फूलों का उदाहरण देकर समझाएं कि कैसे वे पैदा होते हैं और फिर मां के शरीर से अलग होकर खुद अपनी बढ़ोतरी करते हैं। आप उसे सीधे-सीधे यह भी कह सकते हैं कि तुम्हारी मां के शरीर में एक खास अंग है , जिसे गर्भाशय कहते हैं। तुम वहीं से आए हो। इस उम्र में जन्म की पूरी प्रक्रिया के बारे में बताने की जरूरत नहीं है और न ही ऐसी कोई बात बच्चे को कहें कि वह भगवान के यहां से आया या उसे किसी साधु बाबा के यहां से लाए थे। उसे साफ-साफ बताएं कि वह मां के शरीर से पैदा हुआ है। प्रेग्नेंट महिला के बारे में भी बता सकते हैं कि इसी तरह उन आंटी के शरीर से भी एक बेबी पैदा होगा ।
अगर बच्चा पैरंट्स की शादी की ऐल्बम देखकर)कहे इसमें सबकी फोटो है,मेरी क्यों नहीं है ? तो इस सवाल को हैंडल करने के कई तरीके हो सकते हैं। 4-6 साल के बच्चों को असली बात समझा पाना मुश्किल है। इस सवाल का जवाब कुछ इस तरह दे सकते हैं कि तुम्हें तब तक मां-पापा इस दुनिया में लाए ही नहीं थे। भ्रमित करने वाले जवाब देने से बचना चाहिए।
लड़कियों और लड़कों के प्राइवेट पार्ट्स अलग-अलग क्यों होते हैं ? ( कई बार बच्चे एक-दूसरे के कपड़ों में झांकते हैं और उनकी जिज्ञासा बढ़ती है।)
इतनी छोटी उम्र में आप बच्चे को शरीर के अंगों की जानकारी नहीं दे सकते। इसलिए उसे समझाएं कि दुनिया में हर शख्स अलग होता है और अलग ही दिखाई देता है। ईश्वर ने हर शख्स को अलग-अलग बनाया है और इसीलिए उनके शरीर की बनावट भी अलग होती है। मसलन लड़कों के शरीर की बनावट अलग होती है और लड़कियों के शरीर की अलग। इसी तरह कुत्ता, बिल्ली, गाय, भैंस और भी तमाम जीव अपने आप में खास होते हैं। तुम लड़के हो और तुम्हारे अंग लड़कियों से अलग बनाए गए हैं।
 सैनिटरी नैपकिन के बारे में पूछना कि यह क्या है ? 
सैनिटरी नैपकिंस के बारे में पूछने पर बच्चों को बता सकते हैं कि ये नैपकिन हैं। जैसे नाक या हाथ पोंछने के लिए तुम सामान्य नैपकिन का इस्तेमाल करते हो , उसी तरह शरीर के प्राइवेट पार्ट्स को पोंछने और उन्हें साफ रखने के लिए मां इनका इस्तेमाल करती है। ये नैपकिन उन नैपकिन से थोड़े अलग होते हैं जिनका इस्तेमाल तुम करते हो, लेकिन इनका काम वही है। इस उम्र में इससे ज्यादा बच्चे को बताने की जरूरत नहीं है।
कॉन्डोम क्या होता है ? ( टीवी आदि में ऐड देखकर)
कॉन्डोम के बारे में बच्चे की जिज्ञासा बेहद नॉर्मल है। अगर घर में कॉन्डोम को छिपाकर भी रखा जाए तो भी इस बात की पूरी संभावना है कि बच्चे टीवी ऐड या सड़कों पर लगे विज्ञापनों के जरिए इस शब्द से परिचित हो चुके हों और इस बारे में आपसे जानने की कोशिश करें। इतने छोटे बच्चों को बता सकते हैं कि जैसे हाथों को किसी बीमारी से बचाने के लिए हम ग्लव्स पहन लेते हैं, उसी तरह कॉन्डम भी एक ग्लव्स की तरह होता है, जो पुरुषों को बीमारियों से बचाता है। अगर बच्चा 14-15 साल के आसपास है तो उसे यह भी कह सकते हैं कि कॉन्डम सेक्स के दौरान पुरुषों को बीमारी से बचाने और बेबी होने से रोकने के काम आता है। सेक्स शब्द का प्रयोग करने से घबराएं नहीं, क्योंकि बच्चे को शिक्षा देने के लिए एक-न-एक दिन इस शब्द का इस्तेमाल करना ही है।
9-14 साल के बच्चों के सवाल
मेरे शरीर में ये अचानक बदलाव क्यों आ रहे हैं ? मसलन दाढ़ी मूंछ आना , प्राइवेट पार्ट्स पर बाल, मुहांसों की शुरुआत आदि।
14-15 साल की उम्र किसी बच्चे को यौवन के बारे में जानकारी देने का सही समय है। बच्चों को सबसे पहले इस बात का एहसास दिलाया जाए कि उनके शरीर में जो भी बदलाव आ रहे हैं, वे बिल्कुल नॉर्मल हैं और जरूरी भी। उन्हें बताएं कि तुम्हारे शरीर के विभिन्न अंगों पर आने वाले बाल, आवाज में आने वाला बदलाव, मुंहासे निकलना आदि सभी कुछ नॉर्मल है और ऐसा हॉर्मोनल बदलाव की वजह से हो रहा है। ऐसा सभी के साथ होता है। हमारे साथ भी ऐसा हुआ था। लड़कियों और लड़कों दोनों में ही ऐसे बदलाव आते हैं, हालांकि कुछ चीजें लड़कों और लड़कियों दोनों में अलग-अलग हो सकती हैं।
पीरियड्स क्या होते हैं ?
यह जानना जरूरी है कि लड़कियों को पीरियड्स की जानकारी उस समय ही दे दी जानी चाहिए, जब उनके पीरियड्स शुरू नहीं हुए हों और होने वाले हों। यह ऐसा सवाल है, जिसका जवाब मां को बेटी के पूछने से पहले ही दे देना है। ऐसी अवस्था कौन-सी होगी, इसका फैसला मां से बेहतर कोई नहीं कर सकता, फिर भी आमतौर पर 14 साल की उम्र यह सब जानकारी देने के लिए ठीक है। इस बारे में जानकारी देने का काम मां खुद करे । उन्हें बताया जा सकता है कि यह नॉर्मल है और सभी लड़कियों के साथ ऐसा होता है। बेटियों के साथ मां अपना पर्सनल अनुभव भी शेयर कर सकती हैं और उन्हें सभी बातें विस्तार से बता सकती हैं। मां उन्हें बता सकती हैं कि उनके साथ भी जब ऐसा हुआ था, तो उन्हें भी अजीब-सा लगा था और दर्द भी हुआ लेकिन बाद में यह बिल्कुल नॉर्मल चीज बन गई।
बच्चा कैसे पैदा होता है ?  
इस उम्र तक आते-आते बच्चे की समझ इतनी विकसित हो जाती है कि वह बच्चा पैदा होने के बारे में थोड़ा-बहुत समझ ले। उसे बता सकते हैं कि बच्चा मां के पेट में होता है। जब बच्चा पैदा होने वाला होता है तो मां के पेट के अंत में मौजूद सर्विक्स फैलने लगती है। वहां की मांसपेशियां बच्चे को बाहर धकेलने लगती हैं और बच्चा मां के प्राइवेट पार्ट के जरिए बाहर आ जाता है।
बाल यौन शोषण(चाइल्ड सेक्सुअल अब्यूज)
बच्चों का यौन शोषण करने वाले लोग दिखने में सामान्य ही होते हैं, लेकिन देखा गया है कि ऐसे लोग बच्चों के साथ जरूरत से ज्यादा वक्त बिताते हैं और उनके साथ ज्यादा घुलने-मिलने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोगों को पकड़ना या उनकी पहचान कर पाना आसान नहीं है। कई बार ऐसे लोग आपके बेहद नजदीकी भी हो सकते हैं, जिन पर आप शक भी नहीं कर पाएंगे। ऐसे में बेहतर यही है कि बच्चे को बाल यौन शोषण के बारे में परिचित कराएं और उसे साफ-साफ बताएं कि अगर कोई भी उसके साथ ऐसी हरकत करता है तो वह फौरन आपको बताए।
ऐसे समझाएं बच्चे को 
यौन शोषण से बच्चे खुद को बचा सकें, इसके लिए यह जरूरी नहीं है कि उन्हें पूरी सेक्स एजुकेशन ही दी जाए। देखिए, एक जागरूक और समझदार मां अपनी  बेटी को कैसे बता सकती है इस सबके बारे में। आप भी यह तरीका अपना सकते हैं:—
- बेटा, टच तीन तरह के होते हैं। गुड टच, बैड टच और सीक्रेट टच।
- गुड टच वह टच होता है, जिससे तुम्हें खुशी मिलती है। जैसे कोई तुम्हें गले से लगा ले, तुमसे हाथ मिला ले, तुम्हारी पीठ थपथपा दे या हाई फाइव करे।
- दूसरी तरफ बैड टच तुम्हें परेशान करता है। इससे तुम्हें बुरा लगता है। मसलन कोई तुम्हें नोच ले, चिकोटी काट ले या किक मार दे।
- अब बात सीक्रेट टच की। सीक्रेट टच के दो हिस्से होते हैं। पहला हिस्सा यह है कि यह टच तुम्हारे प्राइवेट पार्ट्स पर किया जाता है यानी शरीर के उन हिस्सों पर जो स्विम सूट पहनने के दौरान कवर हो जाते हैं। मोटे तौर पर ये तीन अंग हैं। सीना, बॉटम और आगे का हिस्सा। याद रखो ये प्राइवेट हिस्से हैं और इन्हें देखने और टच करने का अधिकार किसी को नहीं है। सीक्रेट टच का दूसरा हिस्सा यह होता है कि ऐसा टच करने वाला व्यक्ति तुम्हें यह कहेगा कि इस बात को किसी को मत बताना। हो सकता है, वह तुम्हें डराए और धमकाए कि यह बात किसी को नहीं बतानी है। यहां यह जानना जरूरी है कि नहलाते वक्त मां ऐसा कर सकती है। वह सीक्रेट टच नहीं है क्योंकि वह कभी नहीं कहती कि यह बात किसी को बताना मत। इसी तरह डॉक्टर अगर तुम्हें इन जगहों पर टच करते हैं, तो वह भी सीक्रेट टच नहीं है क्योंकि डॉक्टर भी यह कभी नहीं कहते कि यह किसी से कहना मत। हालांकि डॉक्टर तुम्हारे इन अंगों को चेक तभी कर सकते हैं, जब तुम्हारे मां या पापा में से कोई साथ हो। लेकिन अगर कोई शख्स तुम्हें ऐसी जगहों पर टच करे और तुम्हें धमकाए या कहे कि यह बात किसी को मत बताना तो यह बात तुम्हें फौरन अपने मम्मी या पापा को जरूर बतानी है।
एक्सपर्ट्स से पूछें 
हर बच्चा अपने आप में यूनीक है और हर बच्चे के मन में उठने वाले सवालों का स्तर भी। हमने कई आम सवालों को छूने की कोशिश की है, फिर भी अगर आपका बच्चा कोई ऐसा सवाल पूछता है जिसका यहां जिक्र होने से रह गया है, तो आप हमें अपना सवाल हिंदी या अंग्रेजी में लिख सकते हैं। मेल करें: socialsamvad@gmail.com पर। हमारे एक्सपर्ट आपको बताएंगे कि उस सवाल का सही जवाब बच्चे को कैसे दिया जाए।
कुछ उलझन भरी स्थितियां 
- अगर बच्चा पैरंट्स को लवमेकिंग करते देख ले। 
अगर बच्चा पैरंट्स को प्राइवेट पलों में देख ले, तो उसके मन पर इसका गहरा असर हो सकता है। ऐसे में उसे हर बात समझाना जरूरी है। अगर पैरंट्स ऐसी स्थिति में नहीं हैं कि बच्चे के सामने आ सकें और बच्चा अचानक कमरे में आ जाता है, तो हड़बड़ाएं नहीं। उसे आराम से कह दें, बेटा अभी मां-पापा को प्राइवेट टाइम चाहिए। अभी अपने कमरे में चले जाओ, तो कुछ ही मिनट में हम आपसे बात करेंगे। बाद में बच्चे को समझाएं कि मां-पापा एक-दूसरे को प्यार कर रहे थे। ऐसा करते वक्त हम दरवाजा बंद कर लेते हैं क्योंकि यह सब प्राइवेट होता है, लेकिन आज हम दरवाजा बंद करना भूल गए। अब बच्चे के रिएक्शन देखें। अगर बच्चा अभी भी परेशान है तो उसे समझाएं कि न तो उसने ऐसे अचानक आकर कोई गलती की है और न ही मां-पापा कोई गलत काम कर रहे थे। यह सब नॉर्मल है। कोशिश करें कि बच्चे के मन में कहीं भी यह भाव न पनपने पाए कि पापा मां को परेशान कर रहे थे।
- अगर टीवी देखते हुए कोई लवमेकिंग या किसिंग सीन आ जाता है। 
टीवी देखते वक्त अगर अचानक किसिंग या लवमेकिंग सीन आ जाए तो हड़बड़ाएं नहीं और न ही टीवी बंद करने या चैनल बदलने की कोशिश करें। सहज भाव से उसे वैसे ही चलने दें और जब सीन खत्म हो जाए तो बच्चे को देखें। अगर वह असहज है या खुद ही उसके बारे में पूछ बैठता है तो इसे शिक्षा देने का एक मौका समझें। बच्चे को उसकी उम्र के मुताबिक, इस बारे में समझा सकते हैं। मसलन ये लोग आपस में प्यार कर रहे थे या यह दो बड़े लोगों के बीच प्यार करने का एक तरीका होता है। अगर आप असहज हो गए या चैनल बदला तो बच्चे पर गलत असर हो सकता है, लेकिन उसे सही सूचना देने से उस पर गलत असर कभी नहीं होगा।
- अगर बच्चा बड़ों को कपड़े बदलते या नहाते चुपचाप देखने की कोशिश करता है। 
जिज्ञासा के चलते बच्चे छुपकर बड़ों को कपड़े बदलते या नहाते देखने की कोशिश कर सकते हैं। ऐसा होना नॉर्मल है। ऐसे में, उन्हें समझाएं कि यह गलत बात हैं। किसी को भी छिपकर नहीं देखना चाहिए। उनसे कहें- तुम्हें भी यह अच्छा नहीं लगेगा कि तुम्हें कोई छिपकर देखे। इसलिए तुम्हें भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए। भूलकर भी बच्चे को डांटें नहीं। उसे यह एहसास न होने दें कि उसने कोई गलत काम कर दिया है। अगर बच्चे को थोड़ी समझ है तो इस मौके पर उसे पुरुष और स्त्री के अंगों के बारे में भी थोड़ी जानकारी दी जा सकती है।
समझाते वक्त पैरंट्स रखें ध्यान
- बच्चे को सेक्स से संबंधित ज्ञान देने की कोई उम्र नहीं होती। यह हर बच्चे के स्तर पर निर्भर करता है। वैसे बच्चे की सेक्स एजुकेशन तभी शुरू हो जाती है , जब वह पालने में होता है।
- बच्चे जब भी सेक्स से संबंधित कोई सवाल पूछें तो उसे एक ऐसे मौके के तौर पर देखना चाहिए, जब आप बच्चे की सेक्स एजुकेशन की शुरुआत कर सकते हैं।
- बच्चे जब भी इस तरह के सवाल पूछें, तो कोशिश यह होनी चाहिए कि उनके इन सवालों के जवाब एकांत में दिए जाएं। अगर बच्चा किसी के सामने सवाल पूछ बैठता है तो उसे प्यार से कह दें कि इसके बारे में हम तुम्हें बाद में बताएंगे और फिर इस वादे को पूरा करें।
- किसी भी सवाल का जवाब इस अंदाज में न दिया जाए, जो बालक की भावनाओं को भड़काए या उत्तेजित करे।
- बच्चे के साथ सख्त और गैर-दोस्ताना रवैया न रखें। आप जो भी बता रहे हैं , वह उसके विकासकाल के मुताबिक होना चाहिए। वैसे ज्यादा ज्ञान भी दे देंगे तो उसका कोई नुकसान नहीं होगा। ज्ञान कभी हानिकारक हो ही नहीं सकता।
- बच्चा अगर शांत स्वाभाव का है तो उसे इस विषय की ज्यादा बातें बता सकते हैं, जबकि चंचल बच्चों को थोड़ा कम ज्ञान देना ही ठीक रहता है।
- अगर कभी बच्चे के किसी सवाल का जवाब मालूम नहीं है या उसने कोई ऐसा प्रश्न पूछ डाला जिसका जवाब देने में आप झिझकते हैं या देना नहीं चाहते तो आप उससे कह सकते हैं - तुम्हारा सवाल बहुत अच्छा है, लेकिन हमें भी इसका जवाब पता नहीं है। हम इसका जवाब मालूम करने की कोशिश करेंगे और फिर तुम्हें बताएंगे।
- ध्यान रखें मां-बाप का आपस में और बच्चे के प्रति जैसा बर्ताव होगा, बच्चा सेक्स संबंधी ज्ञान को उसी के अनुरूप लेगा। जिन मां-बाप के बीच प्रेम होता है और जो बच्चे को भी इस बात का एहसास कराते हैं कि वे उसे बहुत प्यार करते हैं , उनके बच्चों के सेक्स संबंधी ज्ञान में ज्यादा और बेहतरीन तरीके से बढ़ोतरी होती है।
                                                                                                                           वैद्य एस0के0यादव

जब आपका बच्चा पहली बार जाए स्कूल


जब आपका बच्चा पहली बार जाए स्कूल
अगर आपका बच्चा पहली बार स्कूल जा रहा है, तो ज्यादा हाय-तौबा न मचाएं। बस कुछ बातों का ध्यान रखें, ताकि उसे स्कूल में कोई दिक्कत न आए—
आपके बच्चे का नर्सरी क्लास में एडमिशन हो गया है, तो लाजिमी है कि इन दिनों आप लगातार इसी फिक्र में घुल रहे होंगे। सोच रहे होंगे कि बच्चे को क्या पहनाएं, किस तरह का बैग लें, हेयर कटिंग कैसी हो, टिफिन में क्या भेजें वगैरह। ऐसी कशमकश उन पैरंट्स में ज्यादा देखने को मिलती है, जो पहली बार बच्चे को स्कूल भेज रहे होते हैं। आखिर हो भी क्यों न, उनका भी तो यह फर्स्ट एक्सपीरियंस होता है, जिससे वह कई चीजों को लेकर कन्फ्यूजन में रहते हैं।
चाइल्ड स्पेशलिस्टों का कहना है कि पहले बच्चे के दौरान पैंरट्स इस प्रेशर में रहते हैं कि क्या करना ठीक रहेगा और क्या नहीं। बच्चे को स्कूल में कोई दिक्कत न आए, वह क्लास में किसी वजह से दूसरे बच्चों से पीछे न रहे, यह प्रेशर उनको ओवर कॉन्शस रखता है। इसके चलते वे बच्चे को लेकर कभी- कभार ओवर प्रोटेक्टिव भी हो जाते हैं।
अगर आपका बच्चा भी पहली बार स्कूल जा रहा है, तो परेशान न हों, बस रखें कुछ बातों का ध्यान —
- अगर स्कूल यनिफॉर्म है, फिर तो कोई झंझट नहीं। अगर नहीं है, तो रोजाना साफ- सुथरी ड्रेस पहनाकर भेजें। चूंकि बच्चा अभी छोटा है, तो बैग में नैपकिन जरूर रखें, ताकि हाथ गंदे होने पर वह साफ कर पाए।
- बच्चे का आई कार्ड जेब पर रखना कतई न भूलें। यह आपके बच्चे की आइडेंटिटी है। दरअसल, इसमें बच्चे की क्लास, सेक्शन वगैरह लिखा होता है। अगर बच्चा क्लास से बाहर कहीं निकल भी गया और वापस क्लास में नहीं पहुंच पा रहा है, तो इसकी हेल्प से स्कूल में कोई भी उसे आसानी से उसकी क्लास व बस तक पहुंचा देगा।
- बच्चे को स्कूल बस के समय से तकरीबन 50 मिनट पहले उठा लें। ताकि उसे तैयार होने तक पूरा समय मिल सके। लेकिन एक बात का ध्यान रखें कि वह सुबह समय पर तभी उठेगा, जब आप रात को उसे आप समय पर सुलाएंगी।
- बच्चे के लिए 8 से 10 घंटे की नींद बेहद जरूरी है। इसलिए रात को उसे उसी हिसाब से सुलाएं। अगर उसकी नींद पूरी नहीं होगी, तो उसका ध्यान क्लास एक्टिविटीज में नहीं लग पाएगा।
- बच्चे का स्कूल टिफिन तैयार करना किसी बड़े झंझट से कम नहीं होता। समझ में नहीं आता कि रोज क्या बनाएं, जो हेल्दी तो हो ही और बच्चा भी खुशी से खा ले। लेकिन प्लानिंग से आप इसका ध्यान रख सकते हैं। टिफिन में फ्रूट्स डालें , लेकिन इस तरह से कि उसे खाने में मजा आए। बच्चे के मनपसंद फ्लेवर लगाकर सैंडविच को फैंसी शेप में काटें। शुरू में टिफिन में उसकी मनपसंद चीजें रखें। जब उसे एक बार टिफिन की आदत पड़ जाए, तो फिर धीरे- धीरे उसका टेस्ट दूसरी चीजों की तरफ डिवेलप करें।
- घर आकर एक बार उससे दिनभर की एक्टिविटीज पर जरूर डिस्कस करें। इससे बच्चे को लगेगा कि आपको भी उसकी स्कूल एक्टिविटीज में इंटरेस्ट है।
- उसकी सभी चीजों को गौर से सुनें। अच्छी चीजों पर उसकी तारीफ करें। लेकिन गलत चीजों पर डांटे नहीं और न ही उस समय रिएक्ट करें। फिर कभी जब बच्चा अच्छे मूड में हो, तो उसे प्यार से उस बात को लेकर गलत व सही समझाएं।
- उससे उसकी फ्रेंड्स के बारे में भी बातचीत करते रहें। इससे आपको पता चलता रहेगा कि आपका बच्चा किस तरह के फ्रेंड सर्कल में मूव कर रहा है और किन विषयों में इंटरेस्ट ले रहा है।
- बच्चों के बिहेवियर पर नजर रखें। अगर आपको कुछ नेगेटिव चेंज नजर आ रहे हैं, तो तुरंत जाकर टीचर्स से मिलें। इससे आप समय रहते ही चीजों को संभाल पाएंगे।
- अगर बच्चा किसी वजह से परेशान है, तो उस समय उसे समस्या को हल करने का सही तरीका बताएं। एक- दो बार ऐसे एक्सपीरियंस के बाद उसमें समस्याओं से लड़ने की ताकत आ जाएगी और फिर वह बड़ी से बड़ी दिक्कतें भी बिना किसी तनाव के हल कर लेगा।
                                                                                                                  वैद्य एस0के0यादव

कब क्यूं और कौनसा टेस्ट कराएं

परिवार के खयाल के साथ आपको अपनी हेल्थ का ध्यान रखना भी बेहद जरूरी है। हाल ही में आई एक रिसर्च की मानें, तो महिलाओं की डेथ होने की खास वजह उनकी बीमारी का देर से पता चलना है। तो क्यों ना उम्र के हर पड़ाव पर टेस्ट करवाकर इससे बचा जाए। जानते हैं इनके बारे में—
एक परफेक्ट बेटी, मां और बीवी बनने में आपका समय कहां छू मंतर हो जाता है, ये आपको खुद ही पता नहीं चलता होगा। लेकिन क्या ये जरूरी नहीं कि आप फैमिली के साथ-साथ अपनी हेल्थ का भी ख्याल रखें। आप खुद ठीक रहेंगी, तभी तो सबकुछ ठीक रख पाएंगी। वैसे, आप समय-समय पर टेस्ट करवाकर अपना हेल्थ स्टेटस चेक कर सकती हैं। आप टीनेजर हैं या शादीशुदा, कुछ टेस्ट करवा सकती हैं। देखा जाए, तो बच्ची के जन्म के समय से ही इन टेस्ट्स की शुरुआत हो जाती है।
बर्थ के टाइम पर 
बच्ची के पैदा होते ही सबसे पहले थॉयराइड और मेटाबॉलिक टेस्ट किया जाता है। इनके जरिए ये देखा जाता है कि बच्ची फिट है या नहीं। इन टेस्ट्स से यह जानने की कोशिश की जाती है कि बच्ची को कोई जन्मजात प्रॉब्लम तो नहीं है। उसके मेंटल लेवल की जांच भी की जाती है।
गर हों टीनेजर 
जब लड़की टीनएज में कदम रखती है, तो उस समय डॉक्टर हीमोग्लोबिन , थॉयराइड और ब्लड शुगर टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं। हीमोग्लोबिन टेस्ट के जरिए ब्लड में आयरन की क्वांटिटी, ब्लड शुगर के जरिए ब्लड में शुगर का लेवल और थॉयराइड टेस्ट से थॉयराइड ग्लैंड से निकलने वाले हॉर्मोंस की क्वांटिटी की जांच की जाती है। बता दें कि यह ऐसा समय होता है जब बॉडी में कई तरह के हार्माेनल चेंजेज आते हैं और इसी उम्र में पीरियड भी शुरू होते हैं।
मैरिज के करीब 
शादी की उम्र यानी 20 से 30 साल के दौरान डॉक्टर लीवर फंक्शन टेस्ट , हीमोग्लोबिन, ब्लड और कोलेस्ट्रॉल चेक करवाने की सलाह देते हैं। अगर आप फैटी हैं और साथ में आपके पीरियड्स भी डिस्टर्ब रहते हैं, तो हार्मोन प्रोफाइल टेस्ट और अल्ट्रासाउंड टेस्ट भी करवा लें। दरअसल, लाइफस्टाइल में आने वाले चेंजेज से होने वाली बीमारियों की रोकथाम में ये टेस्ट हेल्प करते हैं।
30 की उम्र के बाद  
30 साल की उम्र के बाद गाइनोकॉलिजिकल एग्जामिनेशन और ब्रेस्ट सेल्फ एग्जामिनेशन करवाने जरूरी होते हैं। ये उनके लिए भी बेहद जरूरी हैं, जिन महिलाओं को पीरियड्स के दौरान दर्द होता है या जिनके परिवार में पहले किसी को कैंसर हो चुका है या फिर जिनकी डिलीवरी प्री - मैच्योर हुई हो।
प्रेग्नेंसी के दौरान 
प्रेग्नेंसी के दौरान मां और बच्चे की हेल्थ को देखने के लिए ब्लड ग्रुप, आरएच फैक्टर, टॉर्च टेस्ट, ट्रिपल टेस्ट ( अगर बच्चे में कोई जेनेटिक खराबी हो या इस बारे में कोई शक हो ), एचआईवी टेस्ट , एचपीवी टेस्ट , थॉयराइड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड टेस्ट करवाने की सलाह दी जाती है। इनमें से किसी भी टेस्ट का रिजल्ट खराब आने पर आसानी से पता लग जाता है कि बच्चे का डिवेलपमेंट सही तरह से हो रहा है या नहीं।
एग टाइम ब्लड टेस्ट 
अगर आप यह जानना चाहती हैं कि किस मंथ में आप कंसीव कर पाएंगी, तो एग टाइम ब्लड टेस्ट करवा सकती हैं। यह टेस्ट फर्टिलिटी हार्मोन का स्तर नापकर यह बता देता है कि एक महिला के ओवरीज से कितने ओवम बाहर आ सकते हैं। यह खासतौर से उन महिलाओं के लिए बेहद जरूरी है, जो किसी लंबी बीमारी से गुजर रही हैं।
40 की उम्र के बाद  
यह उम्र का वह पड़ाव है, जिसमें थोड़ा सी भी अनदेखी या चूक कई जानलेवा बीमारियों को न्योता देती है। इस समय पैप स्मीयर टेस्ट करवाना जरूरी है, ताकि सर्वाइकल कैंसर से बचा जा सके। दरअसल, यह ब्रेस्ट कैंसर का शुरुआती दौर होता है। इस उम्र में होने वाले कुछ खास दूसरे टेस्ट हैं जैसे हीमोग्लोबिन टेस्ट , लीवर फंक्शन टेस्ट या किडनी फंक्शन टेस्ट, अल्ट्रासाउंड, पैप स्मीयर टेस्ट ( सर्वाकइल कैंसर की जांच के लिए, मैमोग्राफी ( ब्रेस्ट कैंसर की जांच के लिए ), बोन डेन्सीटोमेट्री ( हड्डियों की मजबूती जांचने के लिए ), ईसीजी और चेस्ट एक्सरे ( जरूरत पड़ने पर ) वगैरह।
मिनोपॉज के वक्त 
मिनोपॉज की स्थिति अमूमन 40 साल की उम्र के बाद आती है। अगर महिला को हार्ट प्रॉब्लम है, तो ईसीजी करवाना जरूरी है। इस समय सोनोग्राफी कराना ठीक रहता है। क्योंकि इससे एब्डोमन के सभी अंग लिवर, तिल्ली, किडनी, पैनक्रियाज की भी स्क्रीनिंग हो जाती है। साथ ही आंखों को भी चेक करवा लें।
जब आप हों जायें 50 की
इस उम्र में ब्लड, यूरीन, ईसीजी, लि​िपड प्रोफाइल, ब्लड शुगर, सोनोग्राफी और ओवरी स्ट्रेस टेस्ट करवाए जाते हैं। दरअसल उम्र बढ़ने के साथ कई बीमारियां दस्तक देनी शुरू कर देती हैं। यही समय होता है, जब उन्हें शुरुआती अवस्था में ही पकड़ा जा सकता है।
                                                                                                                        वैद्य एस0के0यादव

गर्मी में कैसे त्वचा बचायें


 गर्मी में  कैसे त्वचा बचायें
गर्मी के मौसम में आपकी त्वचा को विशेष देखभाल की जरूरत होती है। चिलचिलाती धूप व धूल भरी हवाएं आपकी त्वचा की नमी चुरा लेती हैं और आपकी त्वचा को बेजान बना देती हैं। गर्मी में घर से बाहर निकलने से पहले कई सावधानियां बरतनी होती है।
बाहर निकलने से पहले अपने चेहरे को ढकना नहीं भूलें। इस मौसम में आंखों में संक्रमण होने का खतरा रहता है इसलिए चश्मा जरूर लगाएं। यह आपकी आंखों को धूल मिट्टी से बचाएगा। इस मौसम में टैनिंग व सनबर्न होना एक आम समस्या है। इससे बचने के लिए सनस्क्रीन का प्रयोग जरूर करें। गर्मी में ज्यादा देर तक धूप में रहने से त्वचा कैंसर होने का खतरा रहता है। सूर्य की खतरनाक अल्ट्रावॉयलेट किरणें आपकी त्वचा को झुलसा देती हैं। आईए जानें कुछ ऐसे टिप्स के बारे में जिससे आप गर्मियों में अपनी त्वचा का ख्याल रख सकते हैं।
गर्मी में त्वचा की चमक बनाए रखने के लिए सेब को मैश कर उसमें शहद व हल्दी मिलाकर फेस पैक बनाएं और इसे चेहरे पर रोजाना लगाएं। इससे चेहरे को विटामिन मिलता है, और चेहरे की नमी बनी रहती है।
चेहरे को ठंडक पहुंचाने के लिए आप बर्फ के कुछ टुकड़ों को लेकर अपने चेहरे पर लगा सकते हैं। इससे दिन भर धूप की जलन झुलसने से चेहरे को सुकून मिलता है और खोई हुई नमी वापस लौट आती है। चेहरे पर गुलाब जल लगाकर बर्फ लगाने से और अधिक फायदा होता है।
तैलीय त्वचा के लिए खीरे को अच्छे से मैश करके उसका पेस्ट बना लें और फिर चेहरे पर लगाएं। 15 मिनट बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें।
गर्मियों में होने वाले सनबर्न से बचने के लिए टमाटर का पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाएं।
दिन में 3—4 बार चेहरे को ठंडे पानी से धोएं। इससे चेहरे की चमक बढ जाती है।
अगर आपकी त्वचा धूप में -झुलस गई है तो चेहरे पर तरबूज और एलोवेरा लगाकर 10 मिनट में धो लें। इससे -झुलसी हुई त्वचा को राहत मिलती है।
गुलाब जल, नींबू, खीरा और दही मिलकर चेहरे पर लगाएं इससे आपकी त्वचा में ताजगी बनी रहेगी और गर्मियों के दिनों में सूर्य की किरणों से होने वाले दुष्प्रभावों से भी बचेंगी। चेहरे को तौलिए से पोंछने के बजाए अपने आप सूखने दें। इससे चेहरे में ठंडक बनी रहेगी और गदंगी जमा नहीं होगी। तरबूज के गूदे में मलाई और गुलाबजल मिलाकर चेहरे, गर्दन और हाथों में लगाएं। इससे त्वचा में निखार आएगा। सनबर्न होने पर गुलाबजल में तरबूज का रस मिलाकर चेहरे पर लगाएं। दस मिनट बाद चेहरा ठंडे पानी से धो लें। घर पर फेसपैक बनाते समय उसमें एक चम्मच शहद डालाना नहीं भूलें इससे त्वचा में चमक आएगी। स्नान करते समय पानी में नींबू का रस डालने से दिन भर ताजगी महसूस होती है। गर्मी में साबुन का प्रयोग कम से कम करें। इसकी जगह शहद युक्त शॉवर जैल का प्रयोग करें या मसूरदाल, शहद और हल्दी का उबटन बना कर उसका प्रयोग करें। अगर आप इन आसान उपायों को अपनाते है तो इस चिलचिलाती गर्मी में खुद को काफी हद तक बचाये रख सकते हैं।
                                                                                                                        वैद्य एस0के0यादव

वोमेंटिंग और आयुर्वे​द

वोमेंटिंग और आयुर्वे​द 
जब पेट के पदार्थ मुंह और नाक के जरिये निष्काशन होता है, तो उस प्रक्रिया को उल्टियों के नाम से जाना जाता है। उल्टियाँ होने के कई कारण होते हैं जैसे कि अधिक या दूषित खाना खाना, बीमारी, गर्भावस्था, मदिरापान, विषाणुजनित संक्रमण, उदर का संक्रमण, ब्रेन ट्यूमर, मष्तिष्क में चोट, इत्यादि। उल्टियाँ होने के एहसास को मतली के नाम से जाना जाता है, लेकिन यह उल्टियाँ आने से पहले का एहसास होता है, कारण नहीं।
उल्टियों के घरेलू उपचार
उल्टियों को बंद करने के लिए एक बहुत ही उम्दा उपाय है और वह है अदरक और उसकी जड़। आप अदरक के 2 केप्स्युल का प्रयोग कर सकते हैं या अदरक वाली चाय का सेवन कर सकते हैं। अदरक में पाचन क्रिया को ब-सजय़ाने की क्षमता होती है, और यह उदर में से हो रहे भोजन-ंउचयनली को परेशान करने वाले उस अनावश्यक स्राव में बाधा पैदा करता है, जिस स्राव से उल्टियाँ होती हैं।
1 ग्राम हरड़ का चूर्ण शहद के साथ चाटने से भी उल्टियाँ रोकने में मदद मिलती है।
एक और असरदार उपचार है कि आप अपनी उंगलियाँ धोकर एक ही बार अपने गले में घुसाकर पेट में जमा हुए पदार्थों को उल्टी के जरिये बाहर निकाल दें,ताकि उल्टी अंदर जमा न रहने पाएं।
आप एक दो लौंग अपने मुंह में रख सकते हैं, या लौंग के बदले दालचीनी या इलायची भी रख सकते हैं। यह मसाले उल्टियाँ विरोधक औषधियों का काम करते हैं और उल्टियाँ रोकने का यह बहुत ही असरदार उपचार होता है। अजवाइन, पेपरमिंट और कर्पूर का द्राव 15- पुदीनहरा की 20 बूँद तक की मात्रा में मिलाकर पिलाने से उल्टियाँ तुरंत रुक जाती हैं।
नींबू का टुकड़ा काले नमक के साथ अपने मुंह में रखने से आपको उल्टी का एहसास नहीं होगा।
उल्टियाँ होने से 12 घंटो बाद तक ठोस आहार का सेवन न करें, पर अपने आपको जालित रखने के लिए यानि निर्जलीकरण से बचाने के लिए भरपूर मात्रा में पानी और फलों के रस का सेवन करते रहें।
जब भी पानी पियें तो सादा पानी ही पियें। बाजार में उपलब्ध कार्बन युक्त शीत पेयों का सेवन बिलकुल भी न करें क्योंकि यह आपकी आँतों और उदर की जलन को बढाते हैं।
तैलीय, मसालेदार, भारी और मुश्किल से पचनेवाले खान—पान का सेवन न करें क्योंकि ऐसे खाद्य पदार्थ मरीज में उल्टियों का निर्माण करते हैं ।
खाना खाने के फौरन बाद न सोयें।
जब भी सोयें तो अपनी दाहिनी बाजू पर सोयें। इससे आपके पेट के पदार्थ मुंह तक नहीं आ सकेंगे।
उल्टियाँ रोकने के लिए जीरा भी एक नैसर्गिक उपचार माना गया है। आधा चम्मच पिसे हुए जीरे का सेवन करने से आपको पूर्ण रूप से उल्टियों से छुटकारा मिल जायेगा।
चावल के पानी से उल्टियों का उपचार एक बहुत ही प्रचलित और प्रमाणित उपचार कहलाया जाता है। 1 कप चावल पानी में उबाल लें। जब चावल पक जाएँ तो चावल निकालकर उस पानी का सेवन करें। इससे उल्टियाँ रुक जायेंगी। यह एक बहुत ही उत्तम उपचार है उल्टियों को रोकने के लिए।
एक चम्मच प्याज का रस नियमित अंतराल में सेवन करने से भी लाभ मिलता है।
एक ग्लास पानी में शहद मिलाकर पीने से भी उल्टियाँ रुकने में मदद मिलती है।
सामान्य उबकाई में पेपरमिंट का सेवन हितकर होता है। इसे पान में रखकर सेवन करने से भी लाभ मिलता है।
आयुर्वेदिक औषधियां
उल्टियों को रोकने की अन्य आयुर्वेदिक औषधियां हैं, एलादी चूर्ण, वन्तिहर रस, वृषभध्वज रस, रसेन्द्र रस, वान्तिहद रस वगैरह।
                                                                                                                      वैद्य एस0के0यादव

ब्रेस्ट कैंसर स्क्रीनिंग



30 की उम्र के बाद ये टेस्ट कराएं 
महिलाओं को 30 की उम्र के बाद एक-दो साल के अंतराल में कुछ शारीरिक जांचें जरूर करानी चाहिए। ये टेस्ट बढ़ती उम्र के साथ होने वाली गंभीर बीमारियों के प्रति हमें पहले ही आगाह कर देते हैं जिससे सही समय पर इलाज,परहेज व सावधानियां अपनाकर बीमारियों से बचा जा सकता है।
ब्लड प्रेशर 
अगर बीपी 120/80 से 139/89 के बीच हो तो साल में एक बार जांच कराएं और अगर बीपी 140/90 से ज्यादा हो तो डॉक्टर से तुरंत इलाज कराने की जरूरत है क्योंकि ये हाइपरटेंशन का इशारा है। हाई ब्लड प्रेशर से स्ट्रोक, दिल की बीमारियां और किडनी खराब होने जैसी गंभीर समस्या हो सकती हैं।
थायरॉइड 
35 के बाद अचानक से वजन बढ़ने, कोलेस्ट्रोल, उदासी, तनाव जैसे लक्षण दिखें तो महिलाओं को थायरॉइड जांच करानी चाहिए। इसके लिए ब्लड टेस्ट कराना पड़ता है।
कोलेस्ट्रोल: हाई कोलेस्ट्रॉल से ह्वदय संबंधी रोग हो सकते हैं इसलिए साल में एक बार ब्लड टेस्ट जरूर कराना चाहिए। जिससे कोलेस्ट्रॉल के संतुलन और असंतुलन का पता चल सके। अगर कोलेस्ट्रोल 130 से ज्यादा हो, तो यह खतरे की घंटी है।
ब्रेस्ट कैंसर स्क्रीनिंग
ब्रेस्ट कैंसर की जांच के लिए मेमोग्राफी की जाती है। 40 के बाद महिलाओं को हर दो साल में मेमोग्राफी करानी चाहिए।
स्किन कैंसर स्क्रीनिंग 
महिलाओं में 25 की उम्र के बाद मेलानोमा या अन्य स्किन कैंसर हो सकते हैं। गोरी त्वचा वाले लोगों में सांवली त्वचा के मुकाबले मेलानोमा का खतरा ज्यादा रहता है। वे लोग जिन्हें 18 की उम्र से पहले सनबर्न की बहुत परेशानी रही हो या जिनके परिवार में पहले से किसी को मेलानोमा रहा हो तो साल में एक बार फुल बॉडी स्किन कैंसर स्क्रीनिंग जरूर कराएं।
सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग 
ये जांच करवाने से सर्विक्स (गर्भाश्य) और कोशिकाओं में सूजन या संक्रमण का पता चलता है जो कि सर्वाइकल कैंसर का लक्षण होता है इसलिए 30 के बाद पेप स्मियर(पेप्स टेस्ट) कराएं, नतीजा नॉर्मल आने के बावजूद हर तीन साल बाद ये जांच कराते रहें।
पेट की सोनोग्राफी : पथरी व बच्चेदानी के रोगों के लिए।
ईसीजी : ह्वदय संबंधी रोगों के लिए
आई चेकअप : आंखों व मोतियाबिंद के लिए।
यूरिन टेस्ट : यूरिन इंफेक्शन के लिए।
ब्रेस्ट कैंसर के प्रभावी इलाज की नई राह
सिंगापुर में वैज्ञानिकों ने ओस्ट्रोजेन रिसेप्टर निगेटिव ब्रेस्ट कैंसर को बढ़ावा देने वाले एन्जाइम को निशाना बनाने का एक नया तरीका खोजने का दावा किया है।
इस नई खोज से इस बीमारी के प्रभावी इलाज का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा। जिनोम इंस्टीट्यूट आफ सिंगापुर और नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के वैज्ञानिकों के एक दल ने कहा है कि उसने एन्जाइम ईजेडएम2 को निशाना बनाने का तरीका खोज निकाला है।
एन्जाइम ईजेडएम2 से लोगों में ओस्ट्रोजेन रिसेप्टर निगेटिव ब्रेस्ट कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। इस तरह का ब्रेस्ट कैंसर सबसे आक्रामक होता है जिस पर इलाज का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
वैज्ञानिकों के अनुसार इस नई खोज से ईजेडएच2 से संबंधित ब्रेस्ट कैंसर के इलाज का और प्रभावी तरीका खोजने में मदद मिलेगी। यह पता चला है कि ईजेडएच2 एंजाइमी गतिविधियां कुछ महत्वपूर्ण ट्यूमर शामकों को असक्रिय करके कैंसर को बढ़ावा देती हैं।
ट्यूमर शामक ट्यूमर को बढ़ने से रोकते हैं— डा. कियांग यू के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के दल की ओर से की गई इस खोज के बारे में ‘मालिक्यूलर सेल’ पत्रिका लेख प्रकाशित हुआ है।
                                                                                                                         वैद्य एस0के0यादव

प्यार का इजहार करें

आप भी करें प्यार का इजहार


8 फरवरी को प्रपोज डे के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने प्यार का इजहार करते हैं। यदि आप भी किसी को पसंद करते हैं तो यह दिन आपके लिए बिल्कुल सही है। या आप किसी से दोस्ती करना चाहते हैं तो भी आप इस दिन अपनी भावनाओं को सामने वाले तक पहुंचा सकते हैं। यदि आप किसी को पसंद करते है तो यह सही दिन है। उनके और अपने दोस्तों के साथ एक स्कैवेंजर हंट खेलें। खेल में हिंट से जब वह अपने प्राइज तक पहुंच जाए तो उसमें उन्हें एक रिंग मिले जिसमें आई लव यू लिखा हो। अगर आप अपनी प्रेमिका को खुश करना चाहते हैं तो उन्हें किसी चाइनीज रेस्तरां ले जाइए और एक कुकी पर गार्निश करवा दीजिए आई लव यू या वह उनसे शादी करेंगी। अगर आप किसी मिलन समारोह में है तो आप अपनी किसी कला जैसे कि गाना गाकर उनको प्रपोज कर सकते हैं। इस जगह आपको दर्शकों का भरपूर सहयोग मिलेगा। इस दिन आप अपनी प्यार और दोस्ती की भावनाओं को उस तक पहुंचाएं। इस दिन आप उसे बताएं कि आपके जीवन में उसका क्या स्थान है।
                                                                              

फायदेमंद है सेक्स


                                                                                                     
सेक्स को लेकर अभी भी कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई है। लेकिन असल में सेक्स हर लिहाज से फायदेमंद ही साबित होता है। सेक्स के ऊपर कई तरह के शोध और अध्ययन हो चुके हैं जो कि यह सिद्ध करते हैं कि सेक्स फायदेमंद होता है। आइए जानते हैं कि सेक्स करने के कौन-कौन से फायदे हैं। सेक्स के दौरान महिलाओं को चरम का अहसास पुरूषों के मुकाबले ज्यादा देर तक होता है। इसका कारण है कि उस समय सर्विक्स स्पर्म को ओवरी की ओर ले जाने की प्रक्रिया में जुटा होता है। इस दौरान वह चरम का अनुभव करती हैं। एक शोध के मुताबिक सेक्स करने से आत्मसम्मान में बढोतरी होती है। सेक्स विशेषज्ञों के अनुसार बेहतर सेक्स आत्मसम्मान से शुरू होता है और यह आत्मसम्मान को बढ़ाता भी है। उनके मुताबिक जिनके अंदर आत्मसम्मान पहले से ही होता है उन्हें सेक्स के बाद अलग किस्म की खुशी महसूस होती है। काफी लोग ऎसे हैं जो अच्छा महसूस करने के लिए सेक्स करते हैं। एक रिसर्च के मुताबिक सेक्स से बेहतर नींद आती है। दरअसल सेक्स के बाद एक ऑक्सिटॉसिन नाम का हार्माेन रिलीज होता है। इस ऑक्सिटॉसिन हार्मोन से सेक्स करने के तुरंत बाद बेहतर नींद आती है। अच्छी नींद से बाकी चीजें भी बेहतर हो जाती हैं। बेहतर नींद से वजन और ब्लड प्रेशर मेनटेन करने में भी मदद मिलती है। एक शोध में पता चला है कि सेक्स करने से दर्द में राहत मिलती है। शोध के अनुसार सेक्स करने से सिरदर्द और कमर दर्द में राहत मिलती है। सेक्स करने से एंड्रोफिन नामक हार्मोन में बढोतरी होती है। एक बार ऑक्सिटॉसिन हॉर्मोन घटना शुरू होता है तो एंड्रोफिन हॉर्मोन में बढोतरी होती है जिससे दर्द में कमी आती है। इसलिए अगर सेक्स के बाद आपके सिरदर्द में कमी आए या ऑर्थराइटिस का दर्द छूमंतर हो जाए तो चौंकिएगा नहीं। यह सब सेक्स की वजह से है। महिलाओं में अक्सर कमर के आसपास के एरिया में दर्द की शिकायत देखी जाती है। इसकी वजह पेल्विक फ्लोर मसल्स का कमजोर होना है। इन मसल्स को मजबूत करने के लिए महिलाएं व्यायाम करती हैं जिससे यह एरिया मजबूत होता है। सेक्स से भी ठीक यही अनुभूति होती है जो कीगल एक्सरसाइज से होती है और महिलाओं को काफी आराम मिलता है।            
                                                                                                            वैद्य एस0के0यादव

रोगप्रतिरोधक क्षमता बढाने के लिए अच्छा खाएं

अच्छा खाएं

अक्सर देखा गया है कि मौसम बदलते ही सर्दी-जुकाम, खांसी, फ्लू आदि का प्रकोप बढ जाता है। कभी वायरल फीवर का, तो कभी डेंगू का, कभी बर्ड फ्लू का तो कभी स्वाइन फ्लू का आतंक। इन्हें रोक पाना हमारे हाथ में नहीं है। लेकिन हम अपनी रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाकर इन बीमारियों से काफी हद तक सुरक्षित रह सकते हैं। अपनी रोगप्रतिरोधक क्षमता बढाने का सबसे अच्छा व सरल उपाय है अपनी डाइट में जरूरी बदलाव, इसके लिए इन चीजों को अपनी डाइट में शामिल करें।
अधिक मात्रा में प्रोटीन : शाकाहारी लोग दूध, दही पनीर, चीज, सोयाबीन जैसी वस्तुओं को अपनी डाइट में शामिल करें। मांसाहारी हफ्ते में कम से कम तीन बार एग, व्हाइट फिश तथा लीन मीट लें।
 मेवे का नियमित सेवन : अखरोट व बादाम आदि मेवे सेहत की दृष्टि से लाभप्रद माने जाते हैं, लेकिन इन्हें भी सीमित मात्रा में ही लिया जाना चाहिए। साथ ही अलसी व तिल पाउडर भी रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाने के लिए उपयोगी है।
फल व सब्जियां : अलग-अलग प्रकार की तीन कटोरी सब्जियां व तीन प्रकार के फल रोज खाएं। मौसम के अनुसार सब्जियां व फल बदल कर खाएं।
सीरियल्स : अपनी डाइट का एक हिस्सा यानी ब्रेकफास्ट में बाजरा, ओट, सोया, गेहूं, मूग चना आदि को शामिल करें।
 ओमेगा-3 फैटी एसिड्स : ये फ्लेक्सीड यानी अलसी (दिन मे एक टेबलस्पून पाउडर), अखरोट, सोया, काला चना, चौलाई, साबुत उडद, हरी मैथी, बाजरा  इन्हें अपने आहार में शामिल करें।
 एंटीऑक्सीडेंट युक्त आहार : ऎसे पदार्थ लें, जिनमें विटामिन "सी" बीटा कैरोटीन, विटामिन "ई" तथा जिंक व सेलेनियम जैस मिनरल्स हों, क्योंकि ये पौष्टिक एनसीजी श्वास नली के टिश्यूज पर सुरक्षित प्रभाव डालते हैं, साथ ही ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस से भी आपको सुरक्षित करते हैं। इसके लिए सभी रंग की सब्जियां व फल खाएं। अर्थात् हर प्रकार की सब्जियां, लाल टमाटर, लाल, हरी, पीली शिमला मिर्च, चुकंदर, अनार, काले अंगूर, पपीता, संतरा आदि। विटामिन "सी" प्रदान करने वाले पदार्थो का सेवन करें।
  मैगेशिम युक्त पदार्थ : मैग्नेशियम एंटीइन्फ्लेमेटरी तथा मांसपेशियों को रिलेक्स करने वाला तत्व है। ये श्वास संबंधी समस्याओं से लडने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मैग्निशयम के अच्छे स्त्रोत हैं - बाजरा, ज्वार, मक्का, गेहूं का दलिया आदि, साथ ही साबुत चना, साबूत उडद,चौली, राजमा, सोयाबीन, साबुत मूग आदि भी इसके अच्छे साधन है। इसके अलावा बादाम, काजू अखरोट तथा आम, अलूचे, मूली, कमलककडी में भी मैग्नेशियम पाया जाता है।
व्यायाम : नियमित व्यायाम आहर द्वारा प्राप्त पौष्टिक तथा संक्रमण से लडने वाले सेल्स के लगातार फ्लो को बनाए रखता है तथा अनावश्यक तत्वों को शरीर से निकलने में मदद करता है।
रहें स्ट्रेस फ्री : स्ट्रेस के कारण हमारी इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) प्रभावित होती है। अत: यथासंभव रिलेक्स रहने की कोशिश करें। मेडिटेशन, योग, प्राणायाम आदि को अपनी दिनचर्या में शामिल करें।
 हाइजेनिक रहें : हाइजीन का पूरा-पूरा ख्याल रखें। बाहर खाना खाने से पहले खाद्य पदार्थ का सही निरीक्षण करें और अपने हाथों को अच्छी तरह से साफ करें।

  इन जडी-बूटियों को भी आहार में शामिल करें।

मुलैठी : चाइनीज औषाधियों में मुलैठी का अधिक प्रयोग होता है। ये हर्बल औषधि उपचार के प्रभाव को बढाती है, इसलिए मुलैठी रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाने में सहायक है।
अश्वगंधा : इसमें एंटीबेक्टीरियल गुण हैं, इसीलिए ये हमारे इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाता है।
इलायची : हर्बल उपचार में काम आती है। फ्लेवर के साथ-साथ रोगप्रतिरोधक क्रियाओं में भी सहायक है।
चाय : हॉवर्ड मूडिकल स्कूल के एक अध्ययन के अनुसार चाय में निहित केमिकल संक्रमण से लडने व रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने में सहायक है। इसके अलावा विभिन्न प्रकार की हर्बल टी भी संक्रमण से शरीर का बचाव करती है।
                                                                                                             
    वैद्य एस0के0यादव

संतान

साइंस से संतान
मां बनना हर महिला की चाहत होती है लेकिन कई बार किन्हीं वजहों से कुछ महिलाएं कुदरती तरीके से गर्भधारण नहीं कर पातीं। तकनीक ने ऐसी महिलाओं को सहारा दिया और अब कई ऐसे तरीके हैं, जो नाउम्मीद हो चुकी महिलाओं में उम्मीद जगा सकते हैं। गर्भधारण करने की ऐसी ही कुछ तकनीकों के बारे में बता रही हैं । डा0 रचना सिेह
ART यानी असिस्टेड रिप्रॉडक्टिव टेक्नॉलजी 
जो कपल प्राकृतिक तरीके से माता-पिता नहीं बन पाते या जिन्हें किसी तरह की बड़ी या जिनेटिक बीमारी (एड्स, थायरॉइड, आदि) होती है, उनके लिए एआरटी वरदान साबित हुई है। इसके तहत विभिन्न आर्टिफिशल तरीकों से गर्भाधान कराया जाता है।
किसे पड़ती है जरूरत : एआरटी के जरिए गर्भाधान करने से पहले कुछ बातों को जरूर देखा जाता है :
1. शादी 30 साल या उससे ज्यादा उम्र में हुई हो और पिछले छह महीने से बच्चे के लिए कोशिश कर रहे हों, लेकिन कामयाब नहीं हो पा रहे हों।
2 . शादी 30 साल से कम उम्र में हुई हो और पिछले एक साल से गर्भधारण की कोशिश कर रहे हों।
3. प्रेग्नेंसी में रिस्क हो । मां या बच्चे की जान को खतरा हो या होने वाले बच्चे में शारीरिक या मानसिक विकलांगता का खतरा हो।
4. कपल को एड्स, आरएच फैक्टर, पीसीओडी जैसी समस्याएं हो।
डॉक्टर जांच कराने के बाद तय करता है कि कपल को किस तकनीक की जरूरत है। उसी के मुताबिक इलाज किया जाता है।
1 . IVF इनविट्रो फर्टिलाइजेशन
2.IUI इंट्रा यूरीन इनसेमिनेशन
3. ICSI इंट्रासाइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन
4.GIFT गामेट इंट्राफैलोपियन ट्रांसफर
5 . ZIFT जायगोट इंट्राफैलोपियन ट्रांसफर
इस तकनीक को टेस्ट ट्यूब बेबी के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रोसेस में एग सेल्स को यूटरस के बाहर फर्टिलाइज किया जाता है। जब गर्भधारण के बाकी उपाय नाकाम रहते हैं, तब यह इलाज कारगर साबित हो सकता है।
किसके लिए : इस तकनीक का इस्तेमाल उन कपल्स को करना चाहिए, जिसमें-
- महिला की फलोपियन ट्यूब्स ब्लॉक हों
- अगर महिला टीबी की मरीज हो
- महिला की ओवरी में अंडे न बन पाते हों (इसे पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम भी कहते हैं)
- बहुत ज्यादा उम्र (50 साल के बाद) में बच्चे की चाहत रखना
- महिला में मीनोपॉज हो जाना
- प्री-मैच्योर ओवरियन फेल्योर यानी 30 साल की उम्र में ही पीरियड बंद हो जाना
इसके अलावा कई बार पति-पत्नी दोनों की जांच के बाद पता ही नहीं चल पाता कि आखिर समस्या कहां है। ऐसे कपल आईवीएफ करवा सकते हैं।
प्रॉसेस : 
1. पहले महिला के सारे टेस्ट कराए जाते हैं। पीरियड के तीसरे दिन महिला का ब्लड सैंपल लिया जाता है,जिसके जरिए यह जानने की कोशिश की जाती है कि वह किसी तरह की बीमारी से पीडि़त तो नहीं है। टेस्ट के आधार पर आगे बढ़ा जा सकता है।
2. अल्ट्रासाउंड के जरिए यह जानने की कोशिश की जाती है कि यूट्रस, सर्वाइकल कनाल और ओवरी की स्थिति क्या है। यह भी जांच की जाती है कि इस तकनीक के जरिए महिला को गर्भ ठहरने में कोई दिक्कत तो नहीं होगी।
3. तीसरे स्टेप की ओर बढ़ा जाता है। जब महिला का अंडा 18-20 मिमी हो जाता है तो उसे बाहर निकाल लिया जाता है। आमतौर पर अंडा का यह आकार 36 घंटे में बनता है और इसके बाद वह खुद-ब-खुद छोटा होने लगता है। इस प्रॉसेस में अंडे को 36 घंटे से पहले ही बाहर निकाल लिया जाता है। इसके बाद र्स्पम्स को इन अंडों पर छोड़ दिया जाता है। जब कोई अंडा स्पर्म से अच्छी तरह फर्टिलाइज हो जाता है, तो उसे महिला के यूट्रस में डाल दिया जाता है।
समय : कितना वक्त लगेगा, यह महिला की उम्र और गर्भधारण न होने के कारण पर निर्भर करता है। महिला की उम्र 30 साल से कम है, तो समय कम लगेगा। उसकी कामयाबी की उम्मीद भी 40 फीसदी तक होगी। इससे ज्यादा उम्र की महिला को ज्यादा समय लग सकता है। 30 साल से ज्यादा हो तो सफलता 35 फीसदी या उससे कम हो सकती है। 30 साल उम्र के साथ-साथ महिला का वजन भी गर्भधारण में बहुत अहम होता है। महिला का वजन ज्यादा है तो उसे वजन कम करना होगा। अंडे की क्वॉलिटी और मात्रा उम्र के साथ गिर जाती है।
खर्चा : आईवीएफ तकनीक में हर स्टेप पर 80 हजार रुपये से 1.25 लाख रुपये तक का खर्चा आता है। कुल मिलाकर चार से पांच लाख रुपये खर्च हो जाते हैं। ज्यादातर सभी बड़े प्राइवेट अस्पतालों में इस तकनीक की व्यवस्था है, लेकिन सरकारी हॉस्पिटलों में कुछ में ही यह सुविधा मौजूद है। सरकारी अस्पतालों में इस तकनीक का पूरा खर्चा करीब 50 से 60 हजार रुपये पड़ता है।
कामयाबी : इस तकनीक में ज्यादातर जुड़वां बच्चे होते हैं। इसकी कामयाबी 20 से 30 फीसदी आंकी गई है, यानी इसमें रिस्क लेना पड़ता है।
एहतियात : आईवीएफ तकनीक अपनाने वाले पुरुषों को डर होता है कि उनके स्पर्म वापस मिलेंगे या नहीं। इस तकनीक का कई संस्थान गलत फायदा उठाते हैं। इसी के कारण आजकल यह एक धंधा-सा बनता जा रहा है। अच्छे संस्थान एक दिन में एक या दो मरीजों का सैंपल ही लेते हैं, ताकि गलती से भी किसी दूसरे के स्पर्म या अंडा आपस में न मिल जाएं। इस बात का ध्यान उन कपल्स को भी रखना चाहिए, जो इस तकनीक से गर्भधारण करा रहे हैं। जब भी प्रक्रिया शुरू हो, हर बार नाम सुनकर ही हां में जवाब दें। एहतियात के लिए प्राइवेट संस्थान बार-बार नाम बोलते रहते हैं।
IUI
कई बार देखा जाता है कि पुरुषों के स्पर्म (शुक्राणु) अच्छी हालत में नहीं होते या इंटरकोर्स के समय ओवरी के बाहर ही रह जाते हैं। ऐसे में इस तकनीक के जरिए स्पर्म को बाहर लैब में अच्छी तरह धोकर उनमें से अच्छे स्पर्म छांटकर सीधे महिला के यूटरस में डाल दिए जाते हैं।
किसके लिए : जिन कपल्स को नीचे लिखी समस्याएं हों, वे इस तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं :
- स्पर्म बहुत कम हों या खराब हों
- महिला की एक फलोपियन ट्यूब ठीक न हो
- सर्विक्स (बच्चेदानी का मुंह) में गड़बड़ी
- कपल सेक्स से दूर रहता हो या सेक्स की इच्छा न हो
स्पर्म बैंक : अगर स्पर्म कम हैं तो स्पर्म बैंक के जरिए गर्भधारण कर सकते हैं। अगर पुरुष किसी बीमारी से पीड़ित है तो भी स्पर्म खराब हो सकते हैं। ऐसे में बैंक से स्पर्म खरीद कर प्रेग्नेंसी हो सकती है।
स्पर्म डोनर : अगर आप चाहते हैं कि आपका ही कोई अपना आपके लिए स्पर्म दें तो आप अपने किसी दोस्त या रिश्तेदार से स्पर्म ले सकते हैं। ऐसे आदमी को स्पर्म डोनर करते हैं।
समय : 24 घंटे यानी एक दिन। स्पर्म फर्टिलाइज होने के बाद उसे महिला के यूटरस में डाल दिया जाता है।
खर्चा : वैसे तो हर बैंक के अलग-अलग रेट हैं, लेकिन आमतौर पर 600 रुपये से 2000 रुपये के बीच स्पर्म मिल जाते हैं। इसके अलावा ट्रीटमेंट के जरिए स्पर्म को बेहतर बनाया जाता है, जिसमें करीब 30 से 40 हजार तक का खर्चा आ जाता है।
कामयाबी : यों तो इस तकनीक से पैदा होने वाले बच्चे ठीक ही होते हैं, लेकिन कुछ मामलों में जन्म के समय बच्चे का वजन बहुत कम होता है। ऐसे बच्चे बहुत नाजुक होते हैं।
एहतियात : इस तकनीक से गर्भधारण करने वाली महिलाओं को ज्यादा एक्सरसाइज नहीं करनी चाहिए। जॉगिंग और एरोबिक्स तो बिल्कुल नहीं करनी चाहिए। शुरुआती दिनों में आराम करना चाहिए। बिना डॉक्टर की सलाह कोई दवा नहीं लेनी चाहिए।
ICSI 
इस तकनीक में पुरुष के स्पर्म और महिला के अंडे को बाहर फर्टिलाइज किया जाता है। सिर्फ एक स्पर्म को नली के जरिए अंडे के बीचोबीच डाल दिया जाता है। फर्टिलाइज होने के बाद उसे यूटरस में डाल दिया जाता है।
किसके लिए : महिला में सब कुछ ठीक हो, लेकिन पुरुष में बिल्कुल स्पर्म न हों।
स्पर्म बैंक : इसमें पुरुष में स्पर्म बिल्कुल नहीं होते, इसलिए किसी तीसरे आदमी के स्पर्म इस्तेमाल किए जाते हैं। ऐसे में स्पर्म बैंक बेहतर विकल्प है। स्पर्म डोनर की भी मदद ले सकते हैं। यह जांच करा लें कि स्पर्म डोनर को कोई बीमारी न हो।
समय : बाहर अच्छी तरह फर्टिलाइज करने में 2-3 दिन लग जाते हैं। उसके बाद उसे यूटरस में डाल दिया जाता है।
खर्चा : स्पर्म खरीदने और बाकी ट्रीटमेंट आदि पर 40 से 50 हजार तक का खर्चा आ जाता है।
कामयाबी : इस तकनीक की कामयाबी के आसार एक-तिहाई रहते हैं, यानी इस तकनीक के जरिए आपको बच्चा मिल ही जाएगा, इसकी सौ फीसदी गारंटी नहीं है।
कुछ और तकनीकें 
ऊपर लिखी तकनीकों के अलावा ये तरीके भी आर्टिफिशल गर्भधारण के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं :
GIFT 
इस तकनीक के जरिए पुरुष के स्पर्म और महिला के अंडे के मिक्सचर को एक मशीन के जरिए फलोपियन ट्यूब में सीधा डाल दिया जाता है, जहां से वह महिला के गर्भ में आ जाता है। इसमें महिला की ट्यूब का ठीक होना जरूरी है। इस तकनीक का इस्तेमाल आर्टिफिशल इंटरकोर्स के रूप में किया जाता है। इस तकनीक का इस्तेमाल आमतौर पर कम ही होता है।
ZIFT 
इस तकनीक में महिला की ओवरी में बने अंडे को बाहर निकाल लिया जाता है और उसे लैब में स्पर्म के साथ फटिर्लाइज किया जाता है। इसके बाद फटिर्लाइज्ड एग को फलोपियन ट्यूब में डाल दिया जाता है। इस तकनीक में भी आईएफटी की तरह महिला की ट्यूब और पुरुष के स्पर्म का ठीक होना बहुत जरूरी है।
                                                                                                  साभार नेट

यूट्रस

गर्भाशय 
  गर्भाशय वह अंग है जहाँ महिला के पेट में बच्चे का विकास होता है। यह मज़बूत मांसपेशियों से बनी एक थैली जैसा होता है जो महिला के पेट में काफ़ी नीचे की ओर स्थित होती है। जब महिला गर्भवती नहीं होती हैं तब यह 7.5 से 10 सेंटीमीटर (3 से 4 इन्च) तक लम्बी हो सकती  है। इसका आकार उल्टी नाशपाती के जैसा होता है। एक निषेचित डिम्ब (एग) गर्भाशय की दीवार से जुड़कर बच्चे में विकसित हो सकता है। बच्चे को सम्भालने योग्य होने के लिए गर्भाशय लम्बाई में 31 सेंटीमीटर (12 इन्च) तक फैल कर बढ़ सकता है। मासिक धर्म के दौरान गर्भाशय से ही रक्तस्राव होता है। यदि कोई भी निषेचित डिम्ब गर्भाशय की भीतरी परत से नहीं जुड़ पाता है तब गर्भाशय इस परत को हटा या छोड़ देता है और यही परत योनि से रक्त के रुप में बाहर निकल जाती है।
गर्भाशय ग्रीवा (सर्विक्स) 
यदि आप गर्भाशय ग्रीवा को महसूस करना चाहती हैं तो, योनि में उंगली डालकर इसे महसूस किया जा सकता है। गर्भाशय ग्रीवा योनि (वेजाइना) के अन्त में होती है। यह चिकनी एवं मज़बूत हो सकती है, बिल्कुल आपकी नाक के अग्रभाग की तरह होती है। यदि महिला उत्तेजित हो तो गर्भाशय ग्रीवा तक पहुँचना मुश्किल हो सकता है क्योंकि उत्तेजना के समय योनि की लम्बाई बढ़ाने के लिए यह ऊपर की ओर खिसक जाती है।
 अंडाशय (ओवरी)



गर्भाशय के दोनों ओर एक एक अंडाशय होता है। ये अण्डे एवं इस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्ट्रोन नामक हार्मोन का उत्पादन करते हैं। किशोरावस्था में होने वाले परिवर्तन इस्ट्रोजन हार्मोन के कारण होते हैं - इसी के कारण स्तनों का विकास होता है और आप यौन रुप से परिपक्व होते हैं। इस्ट्रोजन के साथ, प्रोजिस्ट्रोन मासिक धर्म के दौरान गर्भाशय की भीतरी परत को मोटा करने और गर्भावस्था में मदद करता है।
डिम्बवाही नली (फ़ैलोपियन ट्यूब्स)
गर्भाशय के दोनों ओर स्थित डिम्बवाही नलियाँ अंडाशय को गर्भाशय से जोड़ती हैं। ये अनिषेचित अण्डे को अंडाशय से गर्भाशय तक पहुँचाती हैं।
डिम्ब (एग सेल्स)
हर लड़की के अंडाशय में जन्म से ही लगभग 2,50,000 अनिषेचित डिम्ब हो सकते हैं। इसका अर्थ यह है की जो डिम्ब एक दिन आपके बेटे या बेटी के रुप में विकसित हो सकता है, वह जन्म से ही आपके अंडाशय में उपस्थित हैं। डिम्ब का आकार केवल एक पिन के सिरे के बराबर होता है।
अण्डोत्सर्ग (ओव्यूलेशन)
जब आप किशोरावस्था में पहुँचती हैं तो हार्मोन अंडाशय को हर महीने (लगभग 28 दिन पर) एक अनिषेचित डिम्ब उत्सर्जित करने का संकेत देते हैं। इसे अण्डोत्सर्ग कहते हैं। इसके बाद डिम्ब डिम्बवाहिनी नलिका से होकर गुज़रते हैं। यदि कोई शुक्राणु, डिम्ब तक पहुँचकर उसे निषेचित कर दे तो यह निषेचित डिम्ब गर्भाशय (यूट्रस) की दीवार से चिपक जाता है और बच्चे का विकास शुरु हो जाता है। यदि डिम्ब निषेचित नहीं होता है तो यह मासिक धर्म के दौरान रक्तस्राव के साथ शरीर से बाहर निकल जाता है। अण्डोत्सर्ग के आसपास के समय - उत्सर्जन के 5 दिन पहले एवं 1 दिन बाद - में महिला के गर्भवती होने की सबसे ज्यादा संभावनाएँ होती हैं।                                                                              

      वैद्य एस0के0यादव

Vagina

योनि 
महिला के यौनांग शरीर के अन्दर एवं बाहर होते हैं। ’योनि‘ शब्द का प्रयोग अक्सर महिला के जननांग या यौनांग के लिए किया जाता है जबकी योनि यौनांगों का सिर्फ एक भाग है। योनि एक नली या द्वार है जो बाहरी यौनांगों को भीतरी यौनांगों से जोड़ती है।
 योनि वह रास्ता है जो की वल्वा (महिला के भीतरी यौनांग) को गर्भाशय (यूटरस) से जोड़ता है। यही वह जगह है जहाँ से मासिक धर्म के समय रक्तस्राव होता है, योनि में मैथुन के समय लिंग का प्रवेश होता है और जन्म के समय बच्चा बाहर आता है। योनि एक मांसपेशी से बना अंग है जिसके चारों ओर श्लेष्मा(म्यूकस) परत होती है - ऐसी त्वचा जो नमी पैदा करती है, मुँह के अन्दर की नमी की तरह। यह नमी सेक्स के दौरान चिकनाई का काम करती है जिससे सेक्स  अधिक आरामदायक एवं आनन्ददायक हो सकता है और यह संक्रमण से बचाव भी।
 जब कोई महिला यौन रुप से उत्तेजित होती हैं तो योनि में गीलापन बढ़ जाता है और वह रिलैक्स या तनावरहित हो जाती है। इससे योनि को लिंग या उंगली के आकार के अनुरुप होने में मदद मिलती है। चूंकि योनि मांसपेशी युक्त है, यह फैल या सिकुड़ सकती है और इस पर आप का स्वयं थोड़ा नियंत्रण होता है।
स्वयं अनुभव करके देखें
1. मूत्रत्याग करते समय महिला अपनी मांसपेशियों को सिकोड़ने और तनावमुक्त करने की कोशिश कर सकती हैं। ऐसा करने से उन्हें मूत्र की मात्रा एवं गति पर कुछ नियंत्रण हो सकता है। यह वही मांसपेशियां हैं जो यानि को कसती हैं। महिला इस नियंत्रण का उपयोग सेक्स के दौरान भी कर सकती हैं।
2.  आइने या दर्पण की मदद से अपने योनिद्वार को देख व समझ बूझ सकती हैं। आप उंगलियों से छूकर महसूस भी कर सकती हैं की योनि कैसी होती है।
3. आप योनि के अंदर उंगली डालकर योनि को महसूस कर सकतीं हैं। योनि अन्दर से गालों के भीतर की त्वचा की तरह नम होती है और यह मुँह के अंदर के ऊपरी हिस्से की तरह ऊबड़ खाबड़ भी हो सकती है।
4. महिला अपनी योनि या टिठनी (क्लिटोरिस) को सहलाकर यह जान सकती हैं की उन्हें क्या अच्छा लगता है और क्या करने से उत्तेजना महसूस होती है। ऐसा करके वे चरमआनन्द भी प्राप्त कर सकती हैं।
हस्तमैथुन - खुद को सहला कर आनन्द प्राप्त करना - स्वयं को जानने का एक तरीका है। यह जानने की आपको किस तरह से ज़्यादा संतुष्टि या उत्तेजना मिलती है, आपको अपने साथी के साथ भी सेक्स करने में आनन्द प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।
श्रोणी तल (पेल्विक फ्लोर)
श्रोणी की हड्डी योनि एवं पेट के बीच में होती है। अनुत्रिक (कॉक्सिक्स) या टेल बोन रीढ़ की हड्डी के अन्त में होती है, ठीक मलद्वार के ऊपर।
स्वयं महसूस करें
महिला अपनी श्रोणी तल की मांसपेशियों को कसने और फिर तनावमुक्त करने की कोशिश कर सकती हैं। ऐसा करने का एक तरीका यह भी है कि मूत्र विसर्जन को बीच में ही रोकने की कोशिश की जाए। यह क्रिया भी श्रोणी तल की मांसपेशियों की मदद से ही किया जा सकता है।
                                                                                                           वैद्य एस0के0यादव


Thursday, December 4, 2014

कामसूत्र और 64 कलाएं


आचार्य वात्‍स्‍यायन ने कामसूत्र की रचना इसलिए की थी ताकि गृहस्‍थी से अनजान स्‍त्री-पुरुष इसके हर पक्ष को समझ सकें और इसका ज्ञान व प्रशिक्षण प्राप्‍त करने के उपरांत ही इसमें प्रवेश करें। इससे तनाव से मुक्‍त एक स्‍वस्‍थ्‍य गृहस्‍थी की रचना हो सकती है। लेकिन आजकल जिस तरह से वासना,आकर्षण को प्‍यार समझ प्रेम विवाह करना जैसे कारण विवाह का आधार बन रहे हैं, जिससे गृहस्‍थी की सारी नींव ही कमजोर पड़ रही है। आचार्य की यह 64 विद्या स्‍त्री पुरुष को व्‍यवहारिक बनाने के उद्देश्‍य से बताए गए हैं।
पुरुष के लिए आचार्य का संदेश
पुरुष को धर्म, अर्थ, दंडनीति आदि का अध्‍ययन करते हुए कामसूत्र से संबंधित सभी कलाओं का अध्‍ययन करना चाहिए। वात्‍स्‍यान के अनुसार, कामशास्‍त्र के ज्ञाता बहुत थोड़े से पुरुष होते हैं। जैसे व्‍याकरण या ज्‍योतिष एक शास्‍त्र है उसी तरह काम का भी एक शास्‍त्र है जीवन में काम के विषय में जानना जरूरी है कि काम जीवन का बेहद महत्‍वपूर्ण पक्ष है। इसमें शर्म, संकोच आदि की वजह से इसकी उपेक्षा जीवन में कुंठा बढ़ाती है और गलत मार्ग की ओर प्रेरित करता है।
स्त्रियों के लिए वात्‍स्‍यायन की शिक्षा
स्त्रियों को काम की शिक्षा देना बेहद जरूरी है, क्‍योंकि इस ज्ञान का प्रयोग पुरुषों से अधिक स्त्रियों के लिए जरूरी है। स्‍त्री को विवाह से पहले पिता के घर में और विवाह के पश्‍चात पति की अनुमति से काम की शिक्षा लेनी चाहिए। वात्‍स्‍यायन का मत है कि स्त्रियों को बिस्‍तर पर गणिका की तरह व्‍यवहार करना चाहिए। इससे दांपत्‍य जीवन में स्थिरता बनी रहती है। पति अन्‍य स्त्रियों की ओर आकर्षित नहीं हो पाता और पत्‍नी के साथ उसके मधुर संबंध बने रहते हैं। इसलिए स्त्रियों को यौन क्रिया का ज्ञान होना आवश्‍यक है ताकि वह कामकला में निपुण हो सके और पति को अपने प्रेमपाश में बांध कर रख सके।
स्त्रियों के लिए उचित यह है कि विश्‍वासपात्र व्‍यक्ति से एकांत में कामशास्‍त्र का ज्ञान व प्रयोग सीखे। इसके पश्‍चात 64 प्रयोगों का अभ्‍यास कन्‍या को एकांत में अकेले करना चाहिए ताकि उन्‍हें इसमें निपुणता हासिल हो।
कौन लोग हो सकते हैं विश्‍वासपात्र?
आचार्य वात्‍स्‍यान के अनुसार एक कन्‍या के लिए विश्‍वसनीय निर्देशक निन्‍नलिखित लोग हो सकते हैं-
* धाय की ऐसी कन्‍या जो साथ में खेली हो और विवाहित होने के पश्‍चात पुरुष समागम से परिचित हो
* विवाहिता सखी, जिसे संभोग का आनंद प्राप्‍त हो चुका हो। साथ में उसका सही बोलने वाली और मधुरबोलने वाली होना जरूरी हो ताकि वह काम का सही-सही ज्ञान दे सके।
* हम उम्र मौसी यानी मां की छोटी बहन
* अधेड़ बुढि़या, दासी
* बड़ी बहन, ननद या भाभी
वात्‍स्‍यान द्वारा स्त्रियों के लिए सुझाई गई कामसूत्र की 64 विद्याएं-
गीत, वाद्य, नृत्‍य, चित्र बनाना, बिंदी व तिलक लगाना सीखना, रंगोली बनाना, घरों को फूलों से सजाना, दांतों, वस्‍त्रों, केश, नख आदि को सलीके से रखना, घर के फर्श को साफ रखना, बिस्‍तर बिछाना, जलतरंग बजाना, जलक्रीड़ा करना, नए सीखने के लिए हमेशा उत्‍साहित रहना,माला गूंथना सीखना, सिर के ऊपर से नीचे की ओर मालाएं लटकाना व सिर के चारों ओर माला धारण करना, समय एवं स्‍थान आदि के अनुरूप शरीर को वस्‍त्रादि से सजाना, शंख, अभ्रक आदि से वस्‍त्रों को सजाना, सुगंधित पदार्थ का उचित प्रयोग, गहने बनाना, चमत्‍कारी व्‍यक्तित्‍व, सुंदरता बढ़ाने के नुस्‍खे अपनाना, बेहतरीन ढंग से काम करना, स्‍वादिष्‍ट भोजना बनाना, खाने के बाद की सामग्री जैसे पान, सोंठ, गीला चूर्ण आदि बनाना, सीना, बुनना और कढाई,  चीणा व डमरू बजाना, धागों की सहायता से चित्रकारी बनाना, पहेलियां पूछना और हल करना, अंत्‍याक्षरी करना, ऐसी बातें जो शब्‍द व अर्ध की दृष्टि से दोहराने में कठिन हो, पुस्‍तक पढना, नाटक व कहानियों का ज्ञान, काव्‍य का ज्ञान, लकड़ी के चौखटे, कुर्सी आदि की बुनाई, विभिन्‍न धातुओं की आकृतियां बनाना, काष्‍ठ कला, भवन निर्माण कला,मूल्‍यवान वस्‍तुओं व रत्‍नों की पहचान, धातुओं का ज्ञान, मणियों व रंगों का ज्ञान, उद्यान लगाना, बटेर लडाने की विधि का ज्ञान, तोता मैना से बोलना व गाना सिखाना, पैरों से शरीर की मालिश, गुप्‍त अक्षरों का ज्ञान, कोड भाषा में बात करना, कई भाषाओं का ज्ञान, फूलों की गाडी बनाना, शुभ— अशुभ शकुनों का फल बताना, यंत्र बनाना, सुनी हुई बात, पुस्‍तक आदि को स्‍मरण करना, मिलाकर पढना, गूढ कविता को स्‍पष्‍ट करना, शब्‍दकोश का ज्ञान, छंद का ज्ञान, काव्‍य रचना, नकली रूप धरना, ढंग से वस्‍त्र पहनना, बच्‍चों के खिलौने बनाना,व्‍यवहार ज्ञान, विजयी होने का ज्ञान, व्‍यायाम संबंधी विद्या
आचार्य वात्‍स्‍यायन का मत है कि इन कलाओं को जानने वाली नारी पति वियोग में भी इन कलाओं की मदद से रहना सीख जाती है, उसका पति उसके गुणों पर मोहित रहता है और अन्‍य स्त्रियों से संबंध नहीं बनाता, ऐसे स्‍त्री पुरुष का दांपत्‍य सदा सफल रहता है।
नोट- आज के संदर्भ में इनमें से कई कलाएं सीखने योग्‍य नहीं है, लेकिन इसका तात्‍पर्य व्‍यवहार कुशलता से जरूर है। एक व्‍यवहार कुशल स्‍त्री अव्‍यवहारिक स्‍त्री से हमेशा श्रेष्‍ठ मानी गई है और यही दांपत्‍य जीवन की सफलता का सबसे बड़ा राज है।
                                                                                                                वैद्य.एस0के0यादव