Thursday, January 4, 2018

पुरुषों के बांझपन को दूर करता है कटहल


 कटहल को फल कहिए या सब्‍जी, आयुर्वेद में कटहल के औ‍षधीय गुणों के बारे में बताया गया है। यह न सिर्फ सेहत के लिए बल्कि सौंदर्य के लिहाज से भी कटहल काफी गुणवर्धक माना गया है। कटहल में कई पौष्टिक तत्‍व पाए जाते हैं जैसे, विटामिन A, C, थाइमिन, पोटैशियम, कैल्‍शियम, राइबोफ्लेविन, आयरन, नियासिन और जिंक यही नहीं इसमें खूब सारा फाइबर भी पाया जाता है। इन सभी गुणों के वजह से कटहल लोगों को खूब भाता है। आज हम आपको कटहल में मौजूद पोषक तत्‍वों और उनसे म‍िलने वाले फायदों के बारे में बता रहे हैं, जिन्‍हें जानने के बाद आप कटहल को पहले से भी ज्‍यादा पसंद करने लगेंगे:
बालों के लिए वरदान कटहल के बीज
कटहल बालों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। यह बालों के ब्‍लड सर्कुलेशन को बढ़ाता है, साथ ही बालों की चमक बढ़ाता है और बालों को स्वस्थ बनाएं रखता है। इसके अलावा कटहल के फल में मैग्नीज की मात्रा भरपूर होती है जिससे ब्लड शुगर कंट्रोल होता है। शीघ्रपतन
आयुर्वेद के अनुसार कटहल स्पर्म काउंट बढ़ाने के साथ कामेच्छा भी बढ़ाता है। पका कटहल बांझ पुरुषों में स्पर्म की मोबिलिटी और क्वालिटी बढ़ाने में मददगार है। पुरुषों में शीघ्रपतन के इलाज के लिए भी कहटल काम में लिया जाता है।
हडि्डयों के लिए अच्छा
शरीर की हडि्डयों के लिए ये बेस्ट है इसमें भरपूर कैल्शियम होता है। क्या आपको पता है मुट्ठी भर कटहल में 56.1 मिलीग्राम कैल्शियम होता है। इससे आपकी रोज की 6 फीसदी कैल्शियम की जरूरत पूरी हो जाती है।
एंटी एजिंग के लिए बढिया
कटहल एंटी एजिंग भी है। ये स्किन को डैमेज और झुर्रियों से बचाने में मददगार है। उम्र आपके चेहरे से न झलके, इसके लिए कटहल खाएं। कटहल में फाइबर और पानी की मात्रा अधिक होती है। ये पाचन को ठीक करता है। कब्ज से मुक्ति दिलाता है। पाचन क्रिया करे दुरुस्‍त एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर कटहल एंटी कैंसर होता है। कटहल पाचन तंत्र से सभी विषाक्त पदार्थ बाहर निकालता है। ब्लड प्रेशर कम करने में कारगर है। रोज की 14 फीसदी पोटेशियम की जरूरत एक कप कटा हुआ कटहल खाने से पूरी हो जाती है। इससे आप दिल की बीमारियों से दूर रहते हैं।
चेहरे की कांति
कटहल के बीज का चूर्ण बना कर उसमें थोड़ा शहद मिलाकर चेहरे पर लगाने से चेहरा साफ हो जाता है और दाग-धब्बे मिट जाते हैं। जिन लोगों की चेहरा रुखा और बेजान होता है उन लोगों को कटहल का रस अपने चेहरे पर लगाना चाहिए, इसकी मसाज तब तक करें जब तक यह सूख न जाए फिर थोड़ी देर के बाद अपना चेहरा पानी के साथ धो लें।
दिल का रखे ख्याल
कटहल में कैलोरी नहीं होती है, यह दिल के रोगियों के लिये उपयोगी माना जाता है। कटहल में पोटैशियम पाया जाता है जो कि दिल की हर समस्‍या को दूर करता है क्‍योंकि यह ब्‍लड प्रेशर को कम कर देता है।
एनिमिया भगाए
एनीमिया में भी कटहल अच्छा है। इसमें मिनरल्स और विटामिन होते हैं। कटहल में विटामिन ए, सी, ई और के के साथ-साथ फोलिक एसिड, नियासिन और विटामिन बी-6 होते हैं। इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन ए होता है, जो आंखों के लिए अच्छा होता है।
इम्युनिटी बढ़ाए
कटहल में भरपूर मात्रा में विटामिन सी होता है। इससे इम्युनिटी मजबूत होती है। थायराइड हार्मोन के नियंत्रण में मदद करता है। कटहल में कॉपर भी होता है। वजन बढ़ाने के लिए ऊर्जा का अच्छा स्रोत है। यह कार्बोहाइड्रेट भरपूर है। आपको बता दें एक कप कटहल में 40 ग्राम कार्बोहाइड्रेट होता है। सही तरीके से वजन बढ़ाना चाहते हैं, तो कटहल खाएं।
                                                                                                                             वैद्य सुदेश यादव जख्मी

Saturday, June 11, 2016

जानें क्या हो सकते हैं हृदयाघात के लक्षण

शोधकर्ताओं का मानना है कि अगर महीने भर पहले दिल के मरीजों में ये लक्षण पहचान लिए जाएं, तो हृदयाघात को रोकने में काफी हद तक मदद मिल सकती है। आइए हृदयाघात के कई दिनों पहले से ही पता लगने वाले लक्षणों के बारे में जानें।
पहले दिखने वाले लक्षण
अमरीकन हार्ट एसोसिएशन्‍स साइंटिफिक सेशंस में हुए एक नए शोध के अनुसार, हृदयाघात के लक्षण करीब एक महीने पहले से ही दिखने लग जाते हैं। एक महीने पहले से सीने में हल्का दर्द, सांस लेने में दिक्कत, फ्लू की समस्या और घबराहट जैसे लक्षण दिखने देने लगते हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि अगर महीने भर पहले दिल के मरीजों में ये लक्षण पहचान लिए जाएं, तो हृदयाघात को रोकने में काफी हद तक मदद मिल सकती है। आइए हृदयाघात के कई दिनों पहले से ही पता लगने वाले लक्षणों के बारे में जानें।
थकान और सांस की तकलीफ
थकान और सांस की तकलीफ में आपके शरीर को आराम की जरूरत हैं, लेकिन यह दिल पर अतिरिक्त तनाव के कारण हृदयाघात का लक्षण भी हो सकता है। यदि आप बिना किसी कारण के अक्सर थक जाते हैं या हमेशा थका-थका महसूस करते हो तो यह परेशानी का सबब हो सकता है। थकान और सांस की तकलीफ महिलाओं में आम होती हैं और हृदयाघात होने से कई दिनों पहले शुरू हो जाती है।
बहुत अधिक पसीना आना
बिना किसी कार्य और एक्सरसाइज के सामान्य से अधिक पसीना आना हृदय की समस्याओं की पूर्व चेतावनी संकेत हैं। अवरुद्ध धमनियों के माध्यम से रक्त को दिल तक पंप करने के लिए बहुत अधिक प्रयास करना पड़ता हैं। जिससे आपके शरीर को अतिरिक्त तनाव में शरीर के तापमान को नीचा बनाए रखने के लिए अधिक पसीना आता है। अगर आपको बहुत अधिक पसीना आता है और चिपचिपी त्वचा का अनुभव होता हैं, तो तुरंत अपने चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए।
मतली और अपच 
हृदयाघात से पहले हल्के अपच और अन्य गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं देखने को मिलती हैं। लेकिन हम अक्सर इसको नजरअंदाज कर देते हैं क्योंकि हृदयाघात की समस्या आमतौर पर बड़े लोगों में पाई जाती हैं और उनमें आमतौर पर अधिक अपच की समस्या होती हैं। सामान्य रूप से पेट में दर्द, अपच, हार्ट बर्न या उल्टी की समस्‍या होना हृदयाघात का संकेत हो सकता है।
बेचैनी, दबाव और सीने में दर्द
सीने में दर्द या बेचैनी हृदयाघात का सबसे सामान्य लक्षण है, हालांकि, कुछ लोगों को बिल्कुल भी सीने में दर्द का अनुभव नहीं होता। छाती के बीच में बेचैनी, दबाव, दर्द, जकड़न और भारीपन अनुभव करने पर तुरंत अपने डाक्टर से संपर्क करें।
शरीर में जकडन और दर्द
दर्द और जकड़न शरीर के अन्य हिस्सों में भी हो सकता है। इसमें बाहों, कमर, गर्दन और जबड़े में दर्द या भारीपन भी महसूस हो सकता है। कभी-कभी यह दर्द शरीर के किसी भी हिस्से से शुरू होकर सीधे सीने तक भी पहुंच सकता है। इन लक्षणों की अनदेखी नही करनी चाहिए और संभावित हार्ट अटैक के लिए इनकी जांच की जानी चाहिए।
हर समय भरा हुआ सा महसूस होना
हृदयाघात के पहले से दिखने वाले लक्षणों में परिपूर्णता की भावना भी आती है। इसमें व्यक्ति को हर समय भरा हुआ सा महसूस होता है। ऐसा इसलिए होता है क्‍योंकि जब ऑक्सीजन युक्त रक्त संचार प्रणाली के माध्यम से नहीं जा पाता तब शरीर पेट में दर्द के संकेतों को भेजकर जवाब देता है।
घबराहट
लगातार होनी वाली चिंता और घबराहट को जीवन में होने वाले विशिष्ट तनाव से नहीं जोड़ा जा सकता है। रात को सोने में कठिनाई होना या रात में चिंता या संकट की भावना के कारण अचानक से उठ जाना भी हृदयाघात के पहले से दिखने वाले लक्षण हैं।
फ्लू जैसे लक्षण
चिपच‍िपी और पसीने से तर त्वचा, थका हुआ और कमजोर महसूस होने को अक्सर लोग फ्लू के लक्षण मान लेते हैं। लेकिन वास्तव में यह हृदयाघात का लक्षण हो सकता है। इसके अलावा सीने में भारीपन या दबाव की भावना को भी लोग चेस्ट कोल्ड और फ्लू होने के नाम से भ्रमित होते हैं लेकिन यह हृदयाघात के लक्षण हो सकतो हैं। ऐसा कोई भी लक्षण दिखाई देेने पर तुरंत डाक्‍टर से संपर्क करें।
हार्ट का तेजी से धड़कना
कभी-कभी हृदयघात से पहले दिखने वाले अधिक समान्य लक्षण जैसे तेजी से और अनियमित रूप से पल्स और हार्ट रेट का चलना हृदय की धड़कन में असामान्य तेजी के रूप में जाना जाता है। यदि यह समस्‍या अचानक से आ जाती हैं तो इस अवधि के दौरान आपका दिल बहुत तेजी से और मुश्किल से धड़कता हैं और यह हृदयाघात का लक्षण हो सकता है।
                                                                                                                                वैद्य एस0के0यादव

Sunday, August 30, 2015

अपनी किडनी का रखें ख्याल, स्वस्थ गुर्दा, स्वस्थ शरीर

मानव शरीर में प्रत्येक अंग की तरह किडनी यानी कि गुर्दा भी एक महत्वपूर्ण अंग है। यह पूरे मानव शरीर का एक मात्र ऐसा जोड़ा अंग है जिसमें एक के निष्क्रिय हो जाने के बाद भी आदमी जीवित रह सकता है। मनुष्य को जागरूक करने लिए मार्च महीने के दूसरे गुरुवार को विश्व गुर्दा दिवस मनाया जाता है। निसंदेह इसका मकसद लोगों को शरीर के इस महत्वपूर्ण अंग के प्रति सचेत और जागरूक करना ही है। मगर आज की भागदौड़ भरी जिंदगी और खानपान के असंतुलन से जाने-अंजाने
इस अंग को बीमारियों ने घेर लिया है।
गुर्दे शरीर में फिल्टर का काम करते हैं 
शरीर में दो गुर्दे होते है, जो रीढ़ की हड्डी के दोनों तरफ पेट के पिछले भाग में होते है। मूल रूप से गुर्दे हमारे शरीर में उत्पन्न हुए जहर को बाहर निकालकर खून की सफाई का काम करते है। दरअसल गुर्दे हमारे शरीर में फिल्टर का काम करते है। इससे शरीर में पानी व नमक की मात्रा नियंत्रित रहती है। गुर्दे फिल्टर के अलावा खून की कमी को भी दूर करते है और हड्डियों को मजबूत रखते है। यदि किसी व्यक्ति के गुर्दो में दिक्कत होती है तो फिर शरीर के दूसरे अंग भी ठीक तरह से काम नहीं करते। आज जबकि रक्तचाप यानी ब्लड प्रेशर और शुगर की बीमारी बढ़ रही है तो उससे गुर्दो के लिए भी परेशानी बढ़ गई है। इन दोनों रोगों का गुर्दो पर सबसे ज्यादा विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। स्वाभाविक है कि जब गुर्दे ठीक से काम नहीं करेंगे तो इससे शरीर में रोगों की संख्या भी बढ़ती जाती है। यदि शरीर में लगातार ऐसी स्थिति बनी रहती है तो एक समय के बाद गुर्दे काम करना बंद कर देते है।
सावधानी और खान-पान नियंत्रण से गुर्दा रहेगा सुरक्षित
गुर्दो में भी कई रोग होते है जैसे पथरी, मूत्राशय में संक्रमण व रूकावट, कैंसर आदि। वैसे तो आज की अत्याधुनिक पद्धति से इलाज के चलते गुर्दे के रोगों का इलाज भी काफी हद तक संभव हो रहा है लेकिन सावधानी और जागरूकता से इन रोगों से बचाव भी हो सकता है।
-गुर्दे की बीमारी के लक्षण
पेशाब में खून आना
पेशाब की मात्रा में कमी होना
पैरों व आखों में सूजन आना
शीघ्र थकान महसूस होना
पेशाब में जलन होना और बार-बार आना
ब्लड प्रेशर अनियंत्रित होना
-गुर्दे की बीमारी से बचने के उपाय
नियमित व्यायाम करे
रोजाना तीन से चार लीटर पानी पीएं
दर्द की गोलियों का अनावश्यक सेवन न करे
ब्लड प्रेशर व शूगर की नियमित जाच कराएं
धूम्रपान, शराब के सेवन और फास्ट फूड से बचें
खाने में नमक की मात्रा कम रखें
35 वर्ष की उम्र के बाद खून व पेशाब की जाच अवश्य कराएं
गुर्दे की बीमारी का शीघ्र पता चलने पर इसमें पूर्ण इलाज संभव है और बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है। इसलिए जरूरी है कि ब्लड प्रेशर व डायबिटिज की नियमित जांच कराई जाए।
वैद्य— एस के यादव 

Thursday, May 21, 2015

मधुमेह

मधुमेह या चीनी की बीमारी अर्थात एक खतरनाक रोग है। यह बीमारी हमारे शरीर में अग्नाशय द्वारा इंसुलिन का स्त्राव कम हो जाने के कारण होती है। रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है, साथ ही इन मरीजों में रक्त कोलेस्ट्रॉल, वसा के अवयव भी असामान्य हो जाते हैं। धमनियों में बदलाव होने लगता हैं। इन मरीजों में आँखों, गुर्दे, स्नायु, मस्तिष्क, हृदय के क्षतिग्रस्त होने से इनके गंभीर, जटिल, व घातक रोग का खतरा बढ़ जाता है।
मधुमेह होने पर शरीर में भोजन को ऊर्जा में परिवर्तित करने की सामान्य प्रक्रिया तथा होने वाले अन्य परिवर्तनों का विवरण इस प्रकार से है। किया गया भोजन पेट में जाकर एक प्रकार के ईंधन में बदलता है जिसे ग्लूकोज कहते हैं। यह एक प्रकार की शर्करा होती है। ग्लूकोज रक्त धारा में मिलता है और शरीर की लाखों कोशिकाओं में पहुंचता है। अग्नाशय वह अंग है जो रसायन उत्पन्न करता है और इस रसायन को इंसुलिन कहते हैं। इनसुलिन भी रक्तधारा में मिलता है और कोशिकाओं तक जाता है। ग्लूकोज से मिलकर ही यह कोशिकाओं तक जा सकता है। शरीर को ऊर्जा देने के लिए कोशिकाएं ग्लूकोज को उपापचित (जलाती) करती है। ये प्रक्रिया सामान्य शरीर में होती हैं।
मधुमेह होने पर शरीर को भोजन से ऊर्जा प्राप्त करने में कठिनाई होती है। पेट फिर भी भोजन को ग्लूकोज में बदलता रहता है। ग्लूकोज रक्त धारा में जाता है। किन्तु अधिकांश ग्लूकोज कोशिकाओं में नही जा पाते जिसके कारण इस प्रकार हैं—
इंसुलिन की मात्रा कम हो सकती है।
इंसुलिन की मात्रा अपर्याप्त हो सकती है किन्तु इससे रिसेप्टरों को खोला नहीं जा सकता है।
पूरे ग्लूकोज को ग्रहण कर सकने के लिए रिसेप्टरों की संख्या कम हो सकती है।
अधिकांश ग्लूकोज रक्तधारा में ही बना रहता है। यही हायपर ग्लाईसीमिया (उच्च रक्त ग्लूकोज या उच्च रक्त शर्करा) कहलाती है। कोशिकाओं में पर्याप्त ग्लूकोज न होने के कारण कोशिकाएं उतनी ऊर्जा नहीं बना पाती जिससे शरीर सुचारू रूप से चल सके।
 मधुमेह के प्रकार
1 टाइप–। (इंसुलिन आश्रित मधुमेह)
2 टाइप-।। (इंसुलिन अनाश्रित मधुमेह)
3 एम.आर.डी.एम.(कुपोषण जनित मधुमेह)
4 आई.जी.टी. (इंपेयर्ड ग्लूकोज टोलरेंस)
5 जैस्टेशनल डायबिटीज (गर्भावस्था के दौरान)
6 सेकेंडरी डायबिटीज
  मधुमेह में अन्य अनियमितताएं
 1 रक्तचाप
 2 कोलेस्ट्रोल
 3 मधुमेह के संग हृदय-धमनी रोग
     प्रबंधन
 1 व्यायाम
 2 त्वचा की देख-भाल
   जीन थेरैपी
    देखभाल
 1 घावों की देखभाल
 2 पैरों की देखभाल
  मधुमेह संबंधी आहार
मधुमेह के सामान्य लक्षण
मधुमेह होने के कई लक्षण रोगी को स्वयं अनुभव होते हैं। इनमें बार-बार पेशाब आते रहना (रात के समय भी), त्वचा में खुजली होना, धुंधला दिखना, थकान और कमजोरी महसूस करना, पैरों का सुन्न होना, प्यास अधिक लगना, कटान/घाव भरने में समय लगना, हमेशा भूख महसूस करना, वजन कम होना और त्वचा में संक्रमण होना आदि प्रमुख हैं।
उपरोक्त लक्षणों के साथ-साथ यदि त्वचा का रंग, कांति या मोटाई में परिवर्तन दिखे, कोई चोट या फफोले ठीक होने में सामान्य से अधिक समय लगे, कीटाणु संक्रमण के प्रारंभिक चिह्न जैसे कि लालीपन, सूजन, फोड़ा या छूने से त्वचा गरम हो,योनि या गुदा मार्ग, बगलों या स्तनों के नीचे तथा अंगुलियों के बीच खुजलाहट हो, जिससे फफूंदी संक्रमण की संभावना का संकेत मिलता है या कोई न भरने वाला घाव हो तो रोगी को चाहिये कि चिकित्सक से शीघ्र संपर्क करे।
मधुमेह रोग के प्रमुख लक्षण ये हैं-
रोगी का मुँह खुश्क रहना तथा अत्यधिक प्यास लगना।
भूख अधिक लगना।
अधिक भोजन करने पर भी दुर्बल होते जाना।
बिना कारण रोगी का भार कम होना, शरीर में थकावट के साथ-साथ मानसिक चिन्तन एवं एकाग्रता में कमी होना।
मूत्र बार-बार एवं अधिक मात्रा में होना तथा मूत्र त्यागने के स्थान पर मूत्र की मिठास के कारण चीटियाँ लगना।
शरीर में व्रण अथवा फोड़ा होने पर उसका घाव जल्दी न भरना।
शरीर पर फोड़े-फुँसियाँ बार-बार निकलना।
शरीर में निरन्तर खुजली रहना एवं दूरस्थ अंगों का सुन्न पड़ना।
नेत्र की ज्योति बिना किसी कारण के कम होना।
पुरुषत्वशक्ति में क्षीणता होना।
स्त्रियों में मासिक स्राव में विकृति अथवा उसका बन्द होना।
कारण
हमारे भोजन में कार्बोहाइड्रेट एक प्रमुख तत्त्व है, यही कैलोरी व ऊर्जा का स्रोत है। वास्तव में शरीर के 60 से 70% कैलोरी इन्हीं से प्राप्त होती है। कार्बोहाइड्रेट पाचन तंत्र में पहुंचते ही ग्लूकोज के छोटे-छोटे कणों में बदल कर रक्त प्रवाह में मिल जाते हैं इसलिए भोजन लेने के आधे घंटे भीतर ही रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है तथा दो घंटे में अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाता है।
दूसरी ओर शरीर तथा मस्तिष्क की सभी कोशिकाएं इस ग्लूकोज का उपयोग करने लगती हैं। ग्लूकोज छोटी रक्त नलिकाओं द्वारा प्रत्येक कोशिका में प्रवेश करता है, वहां इससे ऊर्जा प्राप्त की जाती है। यह प्रक्रिया दो से तीन घंटे के भीतर रक्त में ग्लूकोज के स्तर को घटा देती है। अगले भोजन के बाद यह स्तर पुनः बढ़ने लगता है। सामान्य स्वस्थ व्यक्ति में भोजन से पूर्व रक्त में ग्लूकोज का स्तर 70 से 100 मि.ग्रा./डे.ली. रहता है। भोजन के पश्चात यह स्तर 120-140 मि.ग्रा./डे.ली. हो जाता है तथा धीरे-धीरे कम होता चला जाता है।
मधुमेह में इंसुलिन की कमी के कारण कोशिकाएं ग्लूकोज का उपयोग नहीं कर पातीं क्योंकि इंसुलिन के अभाव में ग्लूकोज कोशिकाओं में प्रवेश ही नहीं कर पाता। इंसुलिन एक द्वार रक्षक की तरह ग्लूकोज को कोशिकाओं में प्रवेश करवाता है ताकि ऊर्जा उत्पन्न हो सके। यदि ऐसा न हो सके तो शरीर की कोशिकाओं के साथ-साथ अन्य अंगों को भी रक्त में ग्लूकोज के बढ़ते स्तर के कारण हानि होती है। यदि स्थिति उस प्यासे की तरह है जो अपने पास पानी होने पर भी उसे चारों ओर ढूंढ़ रहा है।
इन द्वार रक्षकों (इंसुलिन) की संख्या में कमी के कारण रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ कर 140 मि.ग्रा./डे.ली. से भी अधिक हो जाए तो व्यक्ति मधुमेह का रोगी माना जाता है। असावधान रोगियों में यह स्तर बढ़ कर 500 मि.ग्रा./ड़े.ली. तक भी जा सकता है।
मधुमेह रोग जटिलताओं में भरा है। सालों साल यदि रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ा रहे तो प्रत्येक अंग की छोटी रक्त नलिकाएं नष्ट हो जाती हैं जिसे माइक्रो एंजियोपैथी कहा जाता है। तंत्रिकातंत्र की खराबी ‘न्यूरोपैथी, गुर्दों की खराबी ‘नेफरोपैथी’ व नेत्रों की खराबी ‘रेटीनोपैथी’ कहलाती है। इसके अलावा हृदय रोगों का आक्रमण होते भी देर नहीं लगती।
मधुमेह के प्रकार
डायबिटीज मेलाइट्स को निम्नलिखित वर्गों में बांटा जा सकता है–
1. आई.डी.डी.एम. इंसुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज मेलाइट्स (इंसुलिन, आश्रित मधुमेह) टाइप–।
2. एन.आई.डी.डी.एम. नॉन इंसुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज मेलाइट्स (इंसुलिन अनाश्रित मधुमेह) टाइप–॥
3. एम.आर.डी.एम. मालन्यूट्रिशन रिलेटिड डायबिटीज मेलाइट्स (कुपोषण जनित मधुमेह)
4. आई.जी.टी.(इंपेयर्ड ग्लूकोज टोलरेंस)
5. जैस्टेशनल डायबिटीज
6. सैकेंडरी डायबिटीज
टाइप–। (इंसुलिन आश्रित मधुमेह)रें]
टाइप–। मधुमेह में अग्नाशय इंसुलिन नामक हार्मोन नहीं बना पाता जिससे ग्लूकोज शरीर की कोशिकाओं को ऊर्जा नहीं दे पाता। इस टाइप में रोगी को रक्त में ग्लूकोज का स्तर सामान्य रखने के लिए नियमित रूप से इंसुलिन के इंजेक्शन लेने पड़ते हैं। इसे ‘ज्यूविनाइल ऑनसैट . डायबिटीज’ के नाम से भी जाना जाता है। यह रोग प्रायः किशोरावस्था में पाया जाता है। इस रोग में ऑटोइम्यूनिटी के कारण रोगी का वजन कम हो जाता है।
टाइप-।। (इंसुलिन अनाश्रित मधुमेह)
लगभग 90% मधुमेह रोगी टाइप-।। डायबिटीज के ही रोगी हैं। इस रोग में अग्नाशय इंसुलिन बनाता तो है परंतु इंसुलिन कम मात्रा में बनती है, अपना असर खो देती है या फिर अग्नाशय से ठीक समय पर छूट नहीं पाती जिससे रक्त में ग्लूकोज का स्तर अनियंत्रित हो जाता है। इस प्रकार के मधुमेह में जेनेटिक कारण भी महत्वपूर्ण हैं। कई परिवारों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है। यह वयस्कों तथा मोटापे से ग्रस्त व्यक्तियों में धीरे-धीरे अपनी जड़े जमा लेता है।
अधिकतर रोगी अपना वजन घटा कर, नियमित आहार पर ध्यान देकर तथा औषधि लेकर इस रोग पर काबू पा लेते हैं।
एम.आर.डी.एम.(कुपोषण जनित मधुमेह)
भारत जैसे विकासशील देश में 15-30 आयु वर्ग के किशोर तथा किशोरियां कुपोषण से ग्रस्त हैं। इस दशा में अग्नाशय पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बना पाता। रोगियों को इंसुलिन के इंजेक्शन देने पड़ते हैं। मधुमेह के टाइप–। रोगियों के विपरीत इन रोगियों में इंसुलिन के इंजेक्शन बंद करने पर कीटोएसिडोसिस विकसित नहीं हो पाता।
आई.जी.टी. (इंपेयर्ड ग्लूकोज टोलरेंस)
जब रोगी को 75 ग्राम ग्लूकोज का घोल पिला दिया जाए और रक्त में ग्लूकोज का स्तर सामान्य तथा मधुमेह के बीच हो जाए तो यह स्थिति आई.जी.टी कहलाती है। इस श्रेणी के रोगी में प्रायः मधुमेह के लक्षण दिखाई नहीं देते परंतु ऐसे रोगियों में भविष्य में मधुमेह हो सकता है।
जैस्टेशनल डायबिटीज (गर्भावस्था के दौरान)
गर्भावस्था के दौरान होने वाली मधुमेह जैस्टेशनल डायबिटीज कहलाती है। 2-3% गर्भावस्था में ऐसा होता है। इसके दौरान गर्भावस्था में मधुमेह से संबंधित जटिलताएं बढ़ जाती हैं तथा भविष्य में माता तथा संतान को भी मधुमेह होने की आशंका बढ़ जाती है।
सेकेंडरी डायबिटीज
जब अन्य रोगों के साथ मधुमेह हो तो उसे सेकेंडरी डायबिटीज कहते हैं। इसमें अग्नाशय नष्ट हो जाता है जिससे इंसुलिन का स्राव असामान्य हो जाता है, जैसे–
रक्त शर्करा स्तर
ग्लूकोज़ ग्रहण करने और उपापचय पर इंसुलिन का प्रभाव। इंसुलिन अपने रिसेप्टर्स (१) से जुड़ा जाता है और रिसेप्टर बहुत सी प्रोटीन क्रियान्वयन प्रकार्य (२) आरंभ कर देते हैं। इनमें ग्लुट-४ यातायातक का प्लाज़्मा मेम्ब्रेन तक विस्थापन और ग्लूकोज़ का इन्फ्लक्स (३), ग्लाइकोजन संश्लेषण (४), ग्लाइकोलिसिस (५) एवं वसा अम्ल संश्लेषण (६) शामिल हैं।
मधुमेह में और सामान्यतया भी रक्त-शर्करा स्तर को सामान्य बनाये रखना आवश्यक होता है। यदि रक्त में शर्करा का स्तर लंबे समय तक सामान्य से अधिक बना रहता है तो उच्च रक्त ग्लूकोज अधिक समय के बाद विषैला हो जाता है। अधिक समय के बाद उच्च ग्लूकोज, रक्त नलिकाओं, गुर्दे, आंखों और स्नायुओं को खराब कर देता है जिससे जटिलताएं पैदा होती है और शरीर के प्रमुख अंगों में स्थायी खराबी आ सकती है। स्नायु की समस्याओं से पैरों अथवा शरीर के अन्य भागों की संवेदना चली जा सकती है। रक्त नलिकाओं की बीमारी से हृदयाघात हो सकता है, पक्षाघात और संचरण की समस्याएं पैदा हो सकती है। आंखों की समस्याओं में आंखों की रक्त नलिकाओं की खराबी (रेटीनोपैथी), आंखों पर दबाव (ग्लूकोमा) और आंखों के लेंस पर बदली छाना (मोतियाबिंद) हो सकते हैं। गुर्दे की बीमारी का कारण, गुर्दा रक्त में से अपशिष्ट पदार्थ की सफाई करना बंद कर देती है। उच्च रक्तचाप से हृदय को रक्त पंप करने में कठिनाई होती है।
मधुमेह में अन्य अनियमितताएं
रक्तचाप
हृदय धड़कने से रक्त नलिकाओं में रक्त पंप होता है और उनमें दबाव पैदा होता है। किसी व्यक्ति के स्वस्थ होने पर रक्त नलिकाएं मांसल और लचीली होती है। जब हृदय उनमें से रक्त संचार करता है तो वे फैलती है। सामान्य स्थितियों में हृदय प्रति मिनट 60 से 80 की गति से धड़कता है। हृदय की प्रत्येक धड़कन के साथ रक्त चाप बढ़ता है तथा धड़कनों के बीच हृदय शिथिल होने पर यह घटता है। प्रत्येक मिनट पर आसन, व्यायाम या सोने की स्थिति में रक्त चाप घट-बढ़ सकता है किंतु एक अधेड़ व्यक्ति के लिए यह 130/80 एम एम एचजी से सामान्यतः कम ही होना चाहिए। इस रक्त चाप से कुछ भी ऊपर उच्च माना जाएगा।
उच्च रक्त चाप के सामान्यतः कोई लक्षण नहीं होते हैं, वास्तव में बहुत से लोगों को सालों साल रक्त चाप बना रहता है किंतु उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं हो पाती है। इससे तनाव, हतोत्साह अथवा अति संवेदनशीलता से कोई संबंध नहीं होता है। आप शांत, विश्रान्त व्यक्ति हो सकते हैं तथा फिर भी आपको रक्तचाप हो सकता है। उच्च रक्तचाप पर नियंत्रण न करने से पक्षाघात, दिल का दौरा, संकुलन हृदय गति रुकना या गुर्दे खराब हो सकते हैं। ये सभी प्राण घातक हैं। यही कारण है कि उच्च रक्तचाप को "निष्क्रिय प्राणघातक" कहा जाता है।
 कोलेस्ट्रोल
शरीर में उच्च कोलेस्ट्रोल का स्तर होने से दिल का दौरा पड़ने का का खतरा चार गुना बढ़ जाता है। रक्तधारा में अधिक कोलेस्ट्रोल होने से धमनियों की परतो पर प्लेक (मोटी सख्त जमा) जमा हो जाती है। कोलेस्ट्रोल या प्लेक पैदा होने से धमनियां मोटी, कड़ी और कम लचीली हो जाती है जिसमें कि हृदय के लिए रक्त संचारण धीमा और कभी-कभी रूक जाता है। जब रक्त संचार रुकता है तो छाती में दर्द अथवा कंठशूल हो सकता है। जब हृदय के लिए रक्त संचार अत्यंत कम अथवा बिल्कुल बंद हो जाता है तो इसका परिणाम दिल का दौड़ा पड़ने में होता है। उच्च रक्त चाप और उच्च कोलेस्ट्रोल के अतिरिक्त यदि मधुमेह भी हो तो पक्षाघात और दिल के दौरे का खतरा 16 गुना बढ़ जाता है।
 हृदय रोग
मधुमेह रोगियों में हृदय-रोग अपेक्षाकृत कम आयु में हो सकते हैं। दूसरा अटैक होने का खतरा सदैव बना रहता है।
रजोनिवृत्ति के पूर्व महिलाओं में एस्ट्रोजन हार्मोन के कारण हृदय रोगों का खतरा पुरुषों की अपेक्षा कम होता है। पर मधुमेह ग्रसित महिलाओं में यह सुरक्षा कवच निप्रभावी हो जाता है और इनके हृदय-रोग का खतरा पुरुषों के समकक्ष हो जाता है।
मधुमेह रोगियों में हृदय-धमनी रोग मौत का प्रमुख कारण है।
मधुमेह रोगियों में हृदय-रोग का खतरा मधुमेह की अवधि के साथ बढ़ता जाता है। इनमें हार्ट-अटैक ज्यादा गंभीर और घातक होता है। मधुमेह मरीजों में हार्ट-अटैक होने पर भी छाती में दर्द नहीं भी हो सकता है, क्योंकि दर्द का अहसास दिलाने वाला इनका स्नायु क्षतिग्रस्त हो सकता है। यह शांत हार्ट-अटैक' कहलाता है।
मधुमेह रोगियों को एन्जाइना होने पर श्वास फूलने, चक्कर आने, हृदय गति अनियमित होने का खतरा रहता है।
मधुमेह रोगियों में यदि रक्त का ग्लूकोज स्तर अत्यधिक बढ़ जाता है और रक्त में किरोन का स्तर भी बढ़ता है तो अचानक रक्त संचार की प्रणाली कार्य करना बंद कर देती है और उससे मौत हो सकती है।
मधुमेह रोगियों में विभिन्न कारणों से रक्त वाहिनियों में एथ्रीमो स्कोरोसिस के बदलाव कम आयु में शुरू होकर तेजी से होते हैं।
मधुमेह, हृदय-रोग, उच्च रक्तचाप तीनों ही जटिल, गंभीर व घातक रोग हैं। रोगों का घनिष्ठ संबंध जीवन-शैली से तो है ही, साथ ही तीनों रोगों का आपस में भी घनिष्ठ संबंध होता है। एक रोग होने पर दूसरे रोगों का खतरा बढ़ जाता है। रोग गंभीर, घातक, अनियंत्रित, लाइलाज हो सकते हैं। अत नियमित अंतराल में चिकित्सकीय परीक्षण करवायें, जिससे इन रोगों की शुरुआती अवस्था में ही पता लग सके।
प्रबंधन
मधुमेह होने के कारण पैदा होने वाली जटिलताओं की रोकथाम के लिए नियमित आहार, व्यायाम, व्यक्तिगत स्वास्थ्य, सफाई और संभावित इनसुलिन इंजेक्शन अथवा खाने वाली दवाइयों (डॉक्टर के सुझाव के अनुसार) का सेवन आदि कुछ तरीके हैं।
चिन्ता, तनाव, व्यग्रता से मुक्त रहें।
तीन माह में एक बार रक्त शर्करा की जाँच करावें।
भोजन कम करें, भोजन में रेशे युक्त द्रव्य, तरकारी, जौ, चने, गेहूँ, बाजरे की रोटी, हरी सब्जी एवं दही का प्रचुरमात्रा में सेवन करें। चना और गेहूँ मिलाकर उसके आटे की रोटी खाना बेहतर है। चना तथा गेहूँ का अनुपात 1:10 हो।
हल्का व्यायाम करें, शारीरिक परिश्रम करें अथवा प्रात: 4-5 कि.मी. घूमें।
मधुमेह पीड़ित मनुष्य नियमित एवं संयमित जीवन के लिये विशेष ध्यान रखें।
शर्करीय पदार्थों का सेवन बहुत सीमित करें।
स्थूल तथा अधिक भार वाले व्यक्ति अपना वजन कम रखने का प्रयत्न करें।
चरपरे एवं कषाय रसयुक्त आहार का विशेष सेवन करें।
मैथुन मधुमेह के रोगियों के लिये वर्जित नहीं है। मैथुन से शरीर का व्यायाम होता है अतः इसे समय-समय पर करते रहना चाहिये।
दवाओं का सेवन चिकित्सक के परामर्श से ही करें।
नित्य कुछ समय के लिये प्राणायाम अवश्य करना चाहिये। जहाँ तक संभव हो कुछ समय नंगे पैर जमीन पर अवश्य चलना, यदाकदा स्थान, जलवायु इत्यादि में भी बदलाव करें। शक्कर के स्तर की नियमित जाँच कराते रहें।
व्यायाम
व्यायाम से रक्त शर्करा स्तर कम होता है तथा ग्लूकोज का उपयोग करने के लिए शारीरिक क्षमता पैदा होती है। प्रतिघंटा 6 कि.मी की गति से चलने पर 30 मिनट में 135 कैलोरी समाप्त होती है जबकि साइकिल चलाने से लगभग 200 कैलोरी समाप्त होती है। मेथी दाने से डायबिटीज नियंत्रित हो जाती है। रात को 1 चम्मच मेथीदाना 1 गिलास गुनगुने पानी में भिगो दें। सुबह उठकर बिना कुल्ला किये मेथीदाना चबा-चबा कर खा लें और पानी को घूँट-घूँट कर पी लें। 2—3 महीने के अन्दर डायबिटीज पूरी तरह नियंत्रित हो जाता है।
मधुमेह के रोगियों को मंडूक आसन व "कपाल-भाति प्राणायाम" करने से बहुत लाभ होता है।
त्वचा की देख-भाल
मधुमेह के मरीजों को त्वचा की देखभाल करना अत्यावश्यक है। भारी मात्रा में ग्लूकोज से उनमें कीटाणु और फफूंदी लगने की संभावना बढ़ जाती है। चूंकि रक्त संचार बहुत कम होता है अतः शरीर में हानिकारक कीटाणुओं से बचने की क्षमता न के बराबर होती है। शरीर की सुरक्षात्मक कोशिकाएं हानिकारक कीटाणुओं को खत्म करने में असमर्थ होती है। उच्च ग्लूकोज की मात्रा से निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन) होता है जिससे त्वचा सूखी हो जाती है तथा खुजली होने लगती है।
जीन थेरैपी
जीन थेरेपी:एक विषाणु वेक्टर को रक्त-शर्करा स्तर बदलने पर डीएनए कोशिकाओं को इंसुलिन के विषाणु उत्पादन के लिए बाध्य करना
मधुमेह के लिए चल रहे शोधों में वैज्ञानिकों ने जीन थेरैपी का सुझाव निकाला है। इसमें रोगी के शरीर में इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं को स्वस्थ कोशिकाओं से यदि बदल दिया जाये तो यह कारगर सिद्ध हो सकता है। इसका प्रयोग एक रोगी चूहे पर किया और उसे स्वस्थ पाया।
देखभाल]
मधुमेह रोगियों को अपने शरीर की स्वयं देखभाल करनी चाहिये। उन्हें चाहिये कि हल्के साबुन या हल्के गरम पानी से नियमित स्नान करें। अधिक गर्म पानी से न नहाएं और नहाने के बाद शरीर को भली प्रकार पोछें तथा त्वचा की सिलवटों वाले स्थान पर विशेष ध्यान दें। वहां पर अधिक नमी जमा होने की संभावना होती है। जैसा कि बगलों, तथा उंगलियों के बीच। इन जगहों पर अधिक नमी से फफूंदी संक्रमण की अधिकाधिक संभावना होती है। त्वचा सूखी न होने दें। जब आप सूखी, खुजलीदार त्वचा को रगड़ते हैं तो आप कीटाणुओं के लिए द्वार खोल देते हैं। पर्याप्त तरल पदार्थों को लें जिससे कि त्वचा पानीदार बनी रहे।
घावों की देखभाल
समय-समय पर कटने या कतरने को टाला नहीं जा सकता है। मधुमेह की बीमारी वाले व्यक्तियों को मामूली घावों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि संक्रमण से बचा जा सके। मामूली कटने और छिलने का भी सीधे उपचार करना चाहिए। उन्हें यथाशीघ्र साबुन और गरम पानी से धो डालना चाहिए और फिर आयोडिन युक्त अलकोहाल या प्रतिरोधी द्रवों को न लगाएं क्योंकि उनसे त्वचा में जलन पैदा होती है। केवल डॉक्टरी सलाह के आधार पर ही प्रतिरोधी क्रीमों का प्रयोग करें। उन पर विसंक्रमित कपड़ा पट्टी या गाज से बांध कर जगह को सुरक्षित करें।
यदि बहुत अधिक कट या जल गया हो, त्वचा पर कहीं पर भी ऐसा लालीपन, सुजन, मवाद या दर्द हो जिससे कीटाणु संक्रमण की आशंका हो या रिंगवर्म, जननेंद्रिय में खुजली या फफूंदी संक्रमण के कोई अन्य लक्षण दिखे तो चिकित्सक से तुरंत संपर्क करें।
पैरों की देखभाल
मधुमेह की जटिल अवस्था : पैर की तीन अंगुलियों में गैंगरीन
मधुमेह की बीमारी में रक्त में ग्लूकोज के उच्च स्तर के कारण स्नायु खराब होने से संवेदनशीलता जाती रहती है। पैरों की नियमित जांच करें, पर्याप्त रोशनी में प्रतिदिन पैरों की नजदीकी जांच करें। देखें कि कहीं कटान और कतरन, त्वचा में कटाव, कड़ापन, फफोले, लाल धब्बे और सूजन तो नहीं है। उंगलियों के नीचे और उनके बीच देखना न भूलें। उनकी नियमित सफाई करें। हल्के साबुन से और गरम पानी से प्रतिदिन साफ करें व पैरों की उंगलियों के नाखूनों को नियमित काटते रहें। पैरों की सुरक्षा के लिए जूते पहनें।
मधुमेह संबंधी आहार
यह आहार भी एक स्वस्थ व्यक्ति के सामान्य आहार की तरह ही है, ताकि रोगी की पोषण संबंधी पोषण आवश्यकता को पूरी की जा सके एवं उसका उचित उपचार किया जा सके। इस आहार में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कुछ कम है लेकिन भोजन संबंधी अन्य सिद्धांतो के अनुसार उचित मात्रा में है। मधुमेह संबंधी समस्त आहार के लिए जड़ एवं कंद, मिठाइयाँ, पुडिंग और चॉकलेट, तला हुआ भोजन, सूखे मेवे, चीनी, केला, चीकू, सीताफल आदि जैसे फल आदि से बचा जाना चाहिए।
आहार नमूना
खाद्य सामग्री शाकाहारी भोजन (ग्राम में) मांसाहारी भोजन (ग्राम में)
अनाज २०० २५०  दालें ६० २० हरी पत्तेदार सब्जियाँ २०० २००
फल २०० २००    दूध (डेयरी का) ४०० २००    तेल २० २०
मछली/ चिकन-बगैर त्वचा का - १०० अन्य सब्जियाँ २०० २००
ये आहार आपको निम्न चीजें उपलब्ध कराता है-
कैलोरी १६००, प्रोटीन ६५ ग्राम, वसा ४० ग्राम, कार्बोहाइड्रेट २४५ ग्राम
वैद्य— एस0के0 यादव

Wednesday, May 20, 2015

गुर्दे खराब होने पर बरतें सावधानी


हमारे गुर्दे रक्त में उपस्थित अपशिष्ट पदार्थों और जल को फ़िल्टर कर मूत्र के रूप में बाहर निकालने की क्रिया संपन्न करते हैं। हमारी मांसपेशियों में उपस्थित क्रिएटिन फ़ास्फ़ेटस  के विखंडन से उर्जा उत्पन होती है और इसी प्रक्रिया में अपशिष्ट पदार्थ क्रिएटनीन बनता है । स्वस्थ गुर्दे अधिकांश क्रिएटनीन को फ़िल्टर कर मूत्र में निष्कासित करते रहते हैं। अगर खून में क्रिएटनीन का स्तर 1.5 से ज्यादा हो जाता है तो समझा जाता है कि गुर्दे ठीक से काम नहीं कर रहे हैं। इसलिये खून में क्रिएटनीन की मात्रा का परीक्षण कराना जरूरी हो जाता है। अब कुछ ऐसे उपायों को व्यवहार में लाकर रोगी अपने खून मे क्रिटनीन की मात्रा घटा सकते हैं। ये ऊपाय गुर्दे का कार्य-भार कम करते हैं जिससे खून में उपस्थित क्रिएटनीन का लेविल कम होने में मदद मिलती है।  क्रिएटनीनीन कम करने वाले भोजन में प्रोटीन, फ़ास्फ़ोरस,पोटेशियम,नमक की मात्रा बिल्कुल कम होने पर ध्यान दिया जाता है। जिन भोजन पदार्थों में इन तत्वों की अधिकता हो उनका परहेज करना आवश्यक है। 
   जब उच्च प्रोटीन वाले खाद्य पदार्थ उपयोग नहीं किये जाएंगे तो मांसपेशियों में कम क्रिएटीन मौजूद रहेगा अत: क्रिएटनीन भी कम बनेगा। किडनी को भी अपशिष्ट पदार्थ  को फ़िल्टर करने में कम ताकत लगानी पडेगी जिससे किडनी की तंदुरस्ती में इजाफ़ा होगा। याद रखने योग्य है कि क्रिएटिन के टूटने से ही क्रिएटनीन बनता है।
       एक और जहां उच्च क्रिएटनीन लेविल गुर्दे की गंभीर विकृति की ओर संकेत करता है वही शरीर में जल की कमी से समस्या और गंभीर हो जाती है। जल की कमी से रक्तगत क्रिएटनीन में वृद्धि होती है। अत: महिलाओं को 24 घंटे में 2.5 लिटर तथा पुरुषों को 3.5 लीटर पानी पीने की सलाह दी जाती है। चाय,काफ़ी में केफ़ीन तत्व ज्यादा होता है जो गुर्दे के स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। अत: इनका सर्वथा परित्याग चाहिए ।
         मूत्र प्रणाली में कोई भी संक्रामक रोग हो जाने से भी रक्तगत क्रिएटनीन बढ सकता है। अत: इस विषय में सावधानीपूर्वक इलाज करवाना चाहिये। उच्च रक्त चाप से गुर्दे को रक्त पहुंचाने वाली नलिकाओं को नुकसान होता है। इससे भी रक्त गत क्रिएटनीन बढ जाता है। अत: ब्लड प्रेशर नियंत्रित करने के उपाय करना जरूरी है।
    नियमित २० मिनट व्यायाम करने और 3 किलोमिटर घूमने से खून में क्रिएटनीन की मात्रा काबू  करने  में मदद मिलती है। व्यायाम और घूमने के मामले में बिल्कुल  आलस्य न करें ।
   मधुमेह रोग धीरे -धीरे गुर्दे को नुकसान पहुंचाता रहता है। इसलिये यह रोग भी रक्तगत क्रिएटनीन को बढाने में अपनी भूमिका निर्वाह करता है। खून में शर्करा संतुलित बनाये रखने के उपाय करना आवश्यक हैं। 
       प्रोटीन हमारे शरीर के ऊतकों और मांसपेशियों के निर्माण में उपयोग होता है। इससे रोगों के विरुद्ध लडने में भी मदद मिलती है। जब प्रोटीन शारीरिक क्रियाओं के लिये टूटता है तो इससे यूरिया अपशिष्ट पदार्थ बनता है। अकर्मण्य अथवा क्षतिग्रस्त किडनी इस यूरिया को शरीर से बाहर नहीं निकाल पाती है। खून में यूरिया का स्तर बढने पर क्रिएटनीन भी बढेगा । मांस में और अंडों में किडनी के लिये सबसे ज्यादा हानिकारक प्रोटीन पाया जाता है। अत: किडनी रोगी को ये भोजन पदार्थ नहीं लेना चाहिये। प्रोटीन की पूर्ति हम थोडी मात्रा में दालो के माध्यम से कर सकते हैं।
   किडनी के सुचारु कार्य नहीं करने से खून में पोटेशियम का लेविल बहुत ज्यादा बढ जाता है। पोटेशियम की अधिकता से अचानक हार्ट अटैक होने की सम्भावना बढ जाती है। अगर लेबोरेटरी जांच में रक्त में पोटेशियम बढा हुआ पाया जाए तो कम पोटेशियम वाला खाना लेना चाहिये। खीरा ककडी,गाजर,सेव,अंगूर और चावल कम पोटेशियम वाले भोजन  पदार्थ हैं । केला,संतरा,आलू का उपयोग वर्जित है। इनमे अधिक पोटेशियम पाया जाता है। लेकिन अगर पोटेशियम वांछित स्तर का हो तो इन फ़लों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
   किडनी अकर्मण्यता एक मुश्किल से काबू में आने वाला रोग है । मेरे बताये उपायों पर पूरी सावधानी के साथ अमल करने से क्रिएटनीन लेविल में वांछित सुधार होगा और किडनी फ़ैलियर की स्थिति से निपटने में मदद मिलेगी।
वैद्य— एस0के0यादव

घर में लगाएं मधुमालती का पौधा


*मधुमालती एक बहुत ही सौम्य प्रकृति का पौधा है । लताएं कम भूमि और कम पानी में अधिक हरियाली प्रदान करती है व छाया देती है साथ ही रंग रंगीले फूलों से घर आंगन की शोभा भी बढ़ती है । इस कारण इन्हें घरों या कार्यालयों के प्रवेश स्थल, दीवारों के साथ— साथ या किनारों पर लगाना बहुत ही उपयोगी रहता है । मधुमालती एक ऐसी लता है जो साल भर हरी रहती है और इस पर लाल, गुलाबी व सफेद रंग के मिश्रित गुच्छों के रूप में फूल आते हैं जिनमें भीनी खुशबू होती है । इसकी डालियाँ नर्म होती है जिन्हें आसानी से काटा— छांटा जा सकता है । यह लता बहुत कम देख भाल मांगती है और एक बार जड़ पकड़ लेने के बाद पानी नहीं देने पर भी चलती रहती है ।
* लता न सिर्फ पर्यावरण संरक्षण का काम करेगी, बल्कि घरों की खूबसूरती भी बढ़ाएगी । लताएं वातावरण से कार्बन डाई आॅक्साइड अवशोषित कर हमें आक्सीजन प्रदान करती ही है, इनके पत्ते अपनी सतह पर धूल कण रोक कर हवा में धूल के कणों की मात्रा भी कम करत हैं ।
* लताओं के पत्ते पानी को वाष्पोत्सर्जित करते है जिससे हवा का तापमान और सूखापन घटता है । लताएं घनी होती हैं, इस कारण दीवारों पर धूप की मार कम पड़ती है । नतीजा घरों का तापमान सामान्य बना रहता है । मधुमालती भी एक ऐसी ही लता है जो साल भर हरी रहती है और इसके फूलों के गुच्छों से भीनी भीनी खुशबू आती रहती है । मालती या मधुमालती के फूल बहुत सुन्दर होते है ।
* मधुमालती फूल के फूल और पत्तियों का रस मधुमेह के लिए बहुत अच्छा है ।
* इसके फूलों से आयुर्वेद में वसंत कुसुमाकर रस नाम की दवाई बनाई जाती है । इसकी 2-5 ग्राम की मात्रा लेने से कमजोरी दूर होती है और हारमोन ठीक हो जाते हैं ।
* प्रमेह, प्रदर, पेट दर्द, सर्दी जुकाम और मासिक धर्म आदि सभी समस्याओं का यह समाधान है । प्रमेह या प्रदर मे इसके 3-4 ग्राम फूलों का रस मिश्री के साथ लें ।
* शुगर की बीमारी में करेला, खीरा, टमाटर के साथ मालती के फूल डालकर जूस निकालें और सवेरे खाली पेट लें या केवल इसकी 5-6 पत्तियों का रस ही ले , वह भी काम करेगा ।
* मधुमालती की बेल कई घरों में लगी होंगी इसके फूल और पत्तियों का रस मधुमेह के लिए बहुत अच्छा है । इसके फूलों से आयुर्वेद में वसंत कुसुमाकर रस नाम की दवाई बनाई जाती है
* प्रमेह या प्रदर में इसके 3-4 ग्राम फूलों का रस मिश्री के साथ लें ।
* कमजोरी में भी इसकी पत्तियों और फूलों का रस ले सकते हैं ।
* पेट दर्द में इसके फूल और पत्तियों का रस लेने से पाचक रस बनने लगते हैं। इसे बच्चे भी आराम से ले सकते हैं।
* सर्दी ज़ुकाम के लिए इसकी एक ग्राम फूल पत्ती और एक ग्राम तुलसी का काढ़ा बनाकर पीयें । यह किसी भी तरह का नुकसान नहीं करता। यह बहुत सौम्य प्रकृति का पौधा है।
* पेट दर्द में इसके फूल और पत्तियों का रस लेने से पाचक रस बनने लगते हैं । सर्दी जुकाम के लिए इसकी एक ग्राम फूल पत्ती और एक ग्राम तुलसी का काढ़ा बनाकर पीयें ।
 वैद्य— एस0के0 यादव

स्वर भंग


* कच्चा सुंहागा आधा ग्राम (मटर के बराबर सुहागे को टुकड़ा) मुँह में रखें और रस चुसते रहें। उसके गल जाने के बाद स्वरभंग में तुरंत आराम हो जाता है। दो तीन घण्टों मे ही गला बिलकुल साफ हो जाता है। उपदेशकों और गायकों की बैठी हुई आवाज खोलने के लिये अत्युत्तम औषधि है।
* सोते समय एक ग्राम मुलहठी के चूर्ण को मुख में रखकर कुछ देर चबाते रहे। फिर वैसे ही मुँह में रखकर सो जाएं । प्रातः काल तक गला साफ हो जायेगा। मुलठी चुर्ण को पान के पत्ते में रखकर लिया जाय तो और भी उत्तम रहेगा। इससे प्रातः गला खुलने के अतिरिक्त गले का दर्द और सूजन भी दूर होती है।
* रात को सोते समय सात काली मिर्च और उतने ही बताशे चबाकर सो जायें। सर्दी जुकाम, स्वर भंग ठीक हो जाएगा। बताशे न मिलें तो काली मिर्च व मिश्री मुँह में रखकर धीरे-धीरे चुसते रहने से बैठा खुल जाता है।
* भोजन के पश्चात दस काली मिर्च का चुर्ण घी के साथ चाटें अथवा दस बताशे की चासनी में दस काली मिर्च का चुर्ण मिलाकर चाटें।
वैद्य एस0के0 यादव